Meri Diary- Rishtey Moti Ho Gaye

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Sahityapedia Publishing, Dec 14, 2022 - Poetry

इस डायरी (पुस्तक) में रचनाकार की बातें कविताओं के रूप में लिखी गई हैं, ये कविताएंँ, संयुक्त परिवार के विखंडन के द्वार पर खड़े इस युग में- भारतीय संस्कृति और परंपराओं के पुनर्स्थापन, पारिवारिक रिश्तों की प्रगाढ़ता, उष्णता, आत्मीयता एवं इनसे उपजे विश्वास, आश्वस्ति, सुरक्षा भाव, सुख-शांति और आनंद की ओर ले जातीं हैं तथा रिश्तों की अहमियत का भरपूर एहसास भी करातीं हैं, वहीं भावुक हृदयों को बार-बार भिगो भी जातीं हैं।


इस पुस्तक की कविताएँ एक ओर समाज में व्याप्त विकृतियों की ओर संकेत करतीं हैं, तो वहीं दूसरी ओर "जीवन कैसा हो? " यह बतातीं हैं।


यह पुस्तक जिंदगी के चारों सोपानों से परिचय कराते हुए पुनर्जन्म, दर्शन, अध्यात्म, और मोक्ष तक की अभिधारणाओं को स्पर्श करती है। पढ़ते हुए पाठक स्वयं भी वही अनुभूति करने लगता है।

 

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Section 4
81
Section 5
84
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ंदु पाराशर रात्रि ंदौर बुधवार अपनी अपने अब आज आया इ ंदु पाराशर इ ंदौर शनिवार इस उनकी उस उसकी एक और कभी कर करता करती करते का काम किंतु किया की कुछ के के लिए को कोई कौन क्या क्यों खुद गई गए गया गुरुवार जब जाए जाती जाते जीवन जो तब तुम तो था थी थे दादी दिन दिल दूर दे दो दोनों नहीं नारियाँ नूतन ने पर परिवार पापा पास पिता प्यार प्रेम फिर बचपन बन बस बहन बहुत बात बिटिया बुधवार बेटी बेटे भर भाई भी मन में माँ मित्र मिले मुझको मुझे मेरा मेरी मेरे मैं यदि यह या याद रक्षाबंधन रविवार रहा रही राम रिश्ते रूप ले वसंत वह वे शनिवार शुक्रवार संग सदा सब सबसे सभी सा साथ सारी सारे सिर्फ सी से सोमवार स्वयं हम हर ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय हे है हैं हो होता है होती होते

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