Śrījīvagosvāmikr̥ta gopālacampū: eka anuśīlanaRāmagopāla, 1987 - 287 pages |
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१० ११ अ० अतः अन्य अपने अर्थ अलंकार आदि इन इस उ०च० उद्धव उन उनके उस एक एवं और कंस कर करके करता करती करते हुए कवि ने कहते हैं कहा का का उल्लेख का प्रयोग किन्तु किया है की की तरह कुछ कृष्ण के के कारण के प्रति के बाद के लिए के समय के साथ को गया गये गो० उ० च० गो० पू० च० गो०पू०च० गोपालचम्पू में गोपियों को जाता था जाता है जाती जाने जो तथा तु तो थी थे दिया दो दोनों द्वारा नहीं नाम ने पर पूर्णिमा पृ० प्रकार प्रस्तुत प्राप्त प्रेम बलराम भ० भक्ति भी मथुरा मनुस्मृति मुख में यह यहाँ ये रहा है राधा रूप वध वह वही वहीं वाराणसी वाले वे शब्द श्रीकृष्ण सि० से स्वयं ही हुआ है हुई है कि हैं हो होकर होता है होती होते हैं