Sewasadan

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Lokbharti Prakashan
कलम के फील्ड मार्शल, अपने इस महान पुरखे को दिल में अदब से झुककर और गर्व से मैं रॉयल सैल्युट देता हूँ । -अमृतलाल नागर प्रेमचन्द का साहित्य केवल गाँधीवाद की शिक्षा नहीं देता, केवल स्वाधीनता की लड़ाई की कहानी नहीं कहता । उनका साहित्य किसान को, साधारण जनता को, उनके साथ काम करने वाले बुद्धिजीवियों को सबक देता है कि किस तरह जनता को साथ लेकर चलने वाला नेता राष्ट्रप्रेमी, देशप्रेमी और राष्ट्रीयता के लिए संघर्ष करने वाले लोग मूलत: और अन्तत: अपने वर्ग-हित के लिए लड़ते हैं उनके वर्ग-हित पर जब चोट पड़ती है, तो चोला बदल लेते हैं, पाला बदल लेते हैं, बाना बदल लेते हैं, पक्ष बदल लेते हैं और उनके विरुद्ध चले जाते हैं । -डॉ. नामवर सिंह
 

Contents

Section 1
1
Section 2
4
Section 3
5
Section 4
25
Section 5
29
Section 6
39
Section 7
50
Section 8
80
Section 18
168
Section 19
181
Section 20
198
Section 21
205
Section 22
218
Section 23
238
Section 24
243
Section 25
253

Section 9
102
Section 10
106
Section 11
121
Section 12
126
Section 13
144
Section 14
150
Section 15
153
Section 16
157
Section 17
165
Section 26
265
Section 27
288
Section 28
298
Section 29
307
Section 30
316
Section 31
320
Section 32
341
Section 33
342

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Common terms and phrases

अगर अपना अपनी अपने अब अभी आज आप इस ईश्वर उनकी उनके उन्हें उन्होंने उमानाथ उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ऐसा और कई कभी कर करके करता करती करते करना करने कहा कहाँ कहीं का काम किया किसी की की ओर कुछ के लिए केवल को कोई क्या क्यों गए गजाधर घर जब जाता जाती जाते जाने जीवन जो तक तुम तुम्हें तो था कि थी थीं थे दिन दिया देखकर देखा दो दोनों नहीं है ने पद्मसिंह पर पास प्रेम प्रेमचंद फिर बहुत बात बातें भी मनुष्य मालूम मुँह मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह यहाँ यही या लगा लिया ले लेकिन लोग वह वहाँ विचार विट्ठलदास वे शर्माजी शान्ता सकता सदन सब समय साथ सामने साहब सिर सुभद्रा सुमन सुमन ने से हम हाँ ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय है कि हैं हो गई हो गया होकर होगा होता होती होने

About the author

प्रेमचन्द (1880-1936) का जन्म बनारस के पास लमही गाँव में हुआ था। उस समय उनके पिता को बीस रुपए तनख्वाह मिलती थी। जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब वे पन्द्रह साल के हुए, तब उनकी शादी कर दी गई और सोलह साल के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया। जैसाकि लोग कहते हैं - लड़कों की यह उम्र खेलने-खाने की होती है लेकिन प्रेमचन्द को तभी से घर सँभालने की चिन्ता करनी पड़ी। तब वे नवें दर्जे में पढ़ते थे और उनकी गृहस्थी में दो सौतेले भाई, सौतेली माँ और खुद उनकी पत्नी थीं। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अनेक प्रकार के संघर्षों से गुजरते हुए उन्होंने 1919 में अंग्रेजी, फारसी और इतिहास लेकर बी.ए. किया; किन्तु उर्दू में कहानी लिखना उन्होंने 1901 से ही शुरू कर दिया था। उर्दू में वह नवाब राय नाम से लिखा करते थे और 1910 में उनकी उर्दू में लिखी कहानियों का पहला संकलन सोज़े वतन प्रकाशित हुआ। इस संकलन के ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिए जाने पर उन्होंने नवाब राय छोड़कर प्रेमचन्द नाम से लिखना शुरू किया। ‘प्रेमचन्द’ - यह प्यारा नाम उन्हें एक उर्दू लेखक और सम्पादक दयानारायन निगम ने दिया था। जलियाँवाला बाग हत्याकांड और असहयोग आन्दोलन के छिड़ने पर प्रेमचन्द ने अपनी बीस साल की नौकरी पर लात मार दी। 1930 के अवज्ञा-आन्दोलन के शुरू होते-होते उन्होंने ‘हंस’ का प्रकाशन भी आरम्भ कर दिया। प्रेमचन्द को कथा-सम्राट बनाने में जहाँ उनकी सैकड़ों कहानियों का योगदान है, वहाँ गोदान, सेवासदन, प्रेमाश्रम, गबन, रंगभूमि, निर्मला आदि उपन्यास आनेवाले समय में भी उनके नाम को अमर बनाए रखेंगे।

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