श्रीमत् भगवत् गीता (हिंदी पद्य अनुवाद) / Shrimat Bhagvat Gita (Hindi Poetic Translation)Ritesh Singh |
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१० १६ १७ १८ अति अर्जुन अर्जुन उवाच अर्थ आत्म आत्मा आदि आसक्ति इति इन्द्रिय इस उत्तम उत्पन्न उस एक ओर और कर करता करते करने कर्म कहते कहा का काम कारण किया की कुछ कृष्ण के के लिए को गीता गुण चित्त जग जन्म जानता जीव जो ज्ञान तथा तन तप तब तरह तु तुम तो त्याग दान देव धर्म नर नष्ट नहि नही नहीं निज ने पर परम परमात्मा पाता पाप पार्थ पुनः पुनि पुरुष प्रकाश प्रकृति प्राण प्राणियों प्राप्त प्रिय फल बुद्धि ब्रह्म भी मन मम महा मुझको मुझमें मुझे में मेरे मैं यज्ञ यदि यह यहाँ यही या युक्त युत युद्ध योग योगी रहित रूप लोक वह वही विष्णु वे वेद श्री भगवानुवाच सदा सब सभी सम सर्व सुख से हि हित ही हुआ हुए हूँ हे हेतु है हैं हो हों होता होते होने से