90 ml Samundar

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Authors' Ink Publications, Nov 27, 2015 - 105 pages

 सुनील साहिल टीवी कॉमेडी शो लेखक एवं कवि-सम्मेलन मंचों पर हास्य-व्यंग्य कवि के रूप में सक्रिय हैं, इंग्लैंड के कई शहरों में काव्य-पाठ का आमंत्रण, रेडियो सनराइज, लन्दन और रेडियो एक्सेल, बिर्मिंघम पर इंटरव्यू प्रसारित, ऍम ए टीवी, लन्दन पर कविताएँ प्रसारित, सब टीवी के शो 'वाह-वाह' में आमंत्रण. 'ये कविताएँ मैंने नहीं लिखी हैं, ये कविताएँ मुझसे अभिव्यक्त हुई हैं, अस्तित्व ने मुझे चुना इन शब्दों, इन भावों का जरिया बनने को, माध्यम बनने को, साधन बनने को, जब मैं मिट गया तो लगा कि अस्तित्व और मुझमें संवाद हो रहा है, एक सम्बन्ध घट रहा है जिसमें ये कुछ सहज अभिव्यक्तियाँ प्रकट हुई, आप हमेशा 'कवि' बने नहीं रह सकते हैं, शायद कुछ पल आप कवि हो जाते हैं जब कविता आपकी रूह की जमीन पर उतरती है, तब आपको अनुभूति होती है कि आपकी देह, आपका मन, आपका जेहन भीतर की यात्रा पर निकला है- बस एक झलक मिलती है सम्बुद्ध होने की और फिर खो जाती है, बस उन्हीं चंद लम्हों का जमावड़ा है - 90 ml समंदर'

 

Selected pages

Contents

Section 1
5
Section 2
8
Section 3
22
Section 4
27
Section 5
36
Section 6
41
Section 7
46
Section 8
56
Section 12
62
Section 13
64
Section 14
68
Section 15
70
Section 16
72
Section 17
79
Section 18
93
Section 19
96

Section 9
58
Section 10
60
Section 11
61
Section 20
101
Section 21
102
Copyright

Common terms and phrases

अपनी अपने अब आज इन इस उन उनकी उस उसके उसे एक लड़की ऐसा और कभी कर करते कविता कहता है कहाँ कहीं का कि किसी की की तरह कुछ के के साथ को कोई क्या क्यूं खुद को खुदा गया है गयी गाँव घर चला चली जब जा जाता जाती है जाने जैसे जो टेह तक तब तुम तुम्हारी तू तेरी तो तो कभी था थी थे दूर देह नहीं ना ने पर पल पास पुणे पे प्रेम फिर बन बना बस बहुत भी मन महाराष्ट्र माँ मिलने मुझे में में और मेरा मेरी मेरे मैं यहाँ या ये रंग रहता रहा रही रहे रात लगता है लड़कियां लिए ले लेकर लेकिन लोग वह वाली वे वो सपने सब सा साहिल सी से सोचा था स्वयं हम हर हरियाणा हाथ हिंदी ही हुआ हुए हूँ है है और हैं हो गया होता है होती हैं होते होने

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