Charitraheen

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Diamond Pocket Books (P) Ltd., Jul 10, 2023 - Fiction - 304 pages

शरत्चन्द्र भारतीय वांग्मय के ऐसे अप्रतिम हस्ताक्षर हैं जो कालातीत और युग संधियों से परे हैं। उन्होंने जिस महान साहित्य की रचना की है उसने पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाठकों को सम्मोहित किया और संचारित किया है। उनके अनेक उपन्यास भारत की लगभग हर भाषा में उपलब्ध हैं। उन्हें हिंदी में प्रस्तुत कर हम गौरवान्वित हैं।
प्रस्तुत उपन्यास 'चरित्रहीन' के प्रमुख पात्र सतीश को सभी चरित्रहीन समझते हैं। खुल्लम-खुल्ला उसे लांक्षित करते हैं, लेकिन क्या दीन-दुखियों, निराश्रित और निरापद व्यक्तियों को आश्रय देना, उनके पक्ष में छाती तानकर खड़े हो जाना चरित्रहीन का प्रमाण है? क्या मानव के नाते दूसरे मानव के प्रति स्नेह, त्याग और बलिदान की भावना रखना चरित्रहीनता का प्रतीक है?
बंगला भाषा के अमर शिल्पी शरत् ने अपने इस उपन्यास में समाज की घिनौनी मान्यताओं पर करारी चोट करते हुए 'चरित्र' की जो मीमांसा की है वह कहां तक उचित और न्यायसंगत है पाठक स्वयं निर्णय कर लेंगे।

 

Contents

Section 1
5
Section 2
12
Section 3
25
Section 4
32
Section 5
40
Section 6
45
Section 7
59
Section 8
73
Section 13
127
Section 14
131
Section 15
155
Section 16
179
Section 17
187
Section 18
195
Section 19
223
Section 20
254

Section 9
91
Section 10
100
Section 11
111
Section 12
115
Section 21
275
Section 22
280
Copyright

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Common terms and phrases

अगर अच्छा अपने अब आज आप आया इस उठा उत्तर उपेन्द्र ने उस उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक और कभी कर करके करने कहकर का काम कि किया किरणमयी ने किसी की ओर कुछ के बाद के लिये के साथ को कोई क्या क्यों गई गये घर चला चुप जब जरा जा जाने जो ज्योतिष ठीक तक तरह तुम तुम्हारे तो था थी थे दिन दिया दिवाकर दे देखकर देखा देर दो दोनों नहीं है ने कहा पर पहले पास पूछा प्रकार फिर बहुत बात बातें बाबू बार बाहर बिहारी बिहारी ने बोला बोली भर भाभी भी भी नहीं भैया मन मुंह मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह या रहा रही रहे रात लगा ले लेकिन लोग लोगों वह वे सकता सतीश ने सब समझ समय सरोजिनी सावित्री सावित्री ने सिर से स्वर हाथ ही हुआ हुई हुये हूं हैं हो गया होकर होगा

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