Hindi Sahitya Ka Itihas

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Lokbharti Prakashan, Sep 1, 2009 - Hindi literature - 535 pages
1930 का दशक आधुनिक हिंदी साहित्य के रचनात्मक विकास में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। एक ओर कथानक और परंपरागत स्थूल वृत्त प्रेमचंद के हाथों में दृष्टि-सम्पन्न कथा-कृतियाँ बनते हैं तो दूसरी ओर प्रसाद-निराला-पंत- महादेवी के यहाँ पिछले इतिवृत्तात्मक काव्य-वर्णन सूक्ष्म अनुभूति-विधान का रूप लेते हैं। इसी के समानांतर रामचंद्र शुक्ल कवि-वृत्त संग्रह को इतिहास बनाते हैं। इतिहास-लेखन में रामचंद्र शुक्ल एक ऐसी क्रमिक पद्धति का अनुसरण करते हैं जो अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करती चलती है। विवेचन में तर्क का क्रमबद्ध विकास ऐसे है कि तर्क का एक-एक चरण एक-दूसरे से जुड़ा हुआ, एक-दूसरे में से निकलता दिखेगा। इसीलिए पाठक को उस पर चलने में सुगमता होती है, जटिल से जटिल प्रसंग आसानी से हृदयंगम हो जाता है। लेखक को अपने तर्क पर इतना गहरा विश्वास है कि आवेश की उसे अपेक्षा नहीं रह जाती। आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक आचार्य शुक्ल का इतिहास इसी प्रकार तथ्याश्रित और तर्कसम्मत रूप में चलता है। वे एक प्रवृत्ति के अंतर्गत सक्रिय या कि समकालीन लेखकों के मूल्यांकन में दोनों पक्षों के वैशिष्ट्य और उनकी सीमाओं का भी अकुंठ विवेचन करते चलते हैं। अपनी आरंभिक उपपत्ति में आचार्य शुक्ल ने बताया है कि साहित्य ‘‘जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्बित होता है,’’ और इन्हीं चित्तवृत्तियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य-परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाने में आचार्य शुक्ल का इतिहास और आलोचना-कर्म निहित है। इस इतिहास की एक बड़ी विशेषता है कि आधुनिक काल के संदर्भ में पहुँचकर लेखक यूरोपीय साहित्य का एक विस्तृत, यद्यपि कि सांकेतिक ही, परिदृश्य खड़ा करता है, जैसे कि आदि तथा मध्यकाल के संदर्भ में संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश काव्यशास्त्र तथा साहित्य का। इससे उसके ऐतिहासिक विवेचन में स्रोत, संपर्क और प्रभावों की समझ स्पष्टतर होती है। यही नहीं, लेखकों के साथ-साथ योरोपीय संगीतकार और कलावंतों पर भी नई प्रवृत्तियों के संदर्भ में वह यथावश्यक टिप्पणी करता है। - रामस्वरूप चतुर्वेदी

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Contents

Section 1
1
Section 2
3
Section 3
34
Section 4
39
Section 5
49
Section 6
62
Section 7
77
Section 8
103
Section 14
300
Section 15
308
Section 16
315
Section 17
335
Section 18
339
Section 19
365
Section 20
394
Section 21
402

Section 9
132
Section 10
159
Section 11
165
Section 12
222
Section 13
278
Section 22
410
Section 23
437
Section 24
495
Section 25
510
Copyright

Common terms and phrases

अतः अधिक अपनी अपने अब आदि इन इनका इनकी इनके इन्होंने इस इसी उनकी उनके उन्हें उर्दू उस उसके एक ऐसे और कई कबीर कर करके करते थे करने कवि कविता कवियों कहा कहीं का कारण काल काव्य किया है किसी की की ओर की भाषा कुछ के बीच के भीतर के लिये के साथ को कोई खड़ी बोली गई गए गद्य ग्रंथ जब जहाँ जा जाता है जाते हैं जिस जिसमें जी जैसे जो ढंग तक तथा तब तो था थी थे दिखाई दिया दो दोनों द्वारा नहीं नाटक नाम ने पर परंपरा पहले पीछे प्रकार प्रसिद्ध फारसी बड़े बहुत बात भी में में भी यह यहाँ या ये रचना रहा रही रहे राजा राम रूप में लिखा लेकर वर्णन वह वे सं० संबंध संवत् संस्कृत सकता सब समय साहित्य सी सूरदास से हम हिंदी हिंदी साहित्य ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो होती होने

About the author (2009)

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जन्म : बस्ती जिले के आयोग नामक गाँव में सन् 1884 ई. शिक्षा : सन् 1888 में वे अपने पिता के साथ राठ जिला हमीरपुर गया तथा वहीं पर विद्याध्यन प्रारम्भ किया। सन् 1901 ई. में उन्होंने मिशन स्कूल से फाइनल की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा प्रयाग के कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज में एम.ए. पढने के लिए आये। वे बराबर साहित्य, मनोविज्ञान, इतिहास आदि के अध्ययन में लगे रहे। गतिविधियाँ : मीरजापुर के मिशन स्कूल में अध्यापन, 1909-10 ई. के लगभग श्हिन्दी शब्द सागर्य काशी नागरी प्रचारिणी सभा के श्नागरी प्रचारिणी पत्रिका्य का सम्पादन, कोश का कार्य समाप्त हो जाने के बाद शुक्ल जी की नियुक्ति हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस में हिन्दी के अध्यापक रूप में हो गयी। सन् 1937 ईत्र में वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए। साहित्यिक सेवा : चिन्तामणि भाग, हिन्दी साहित्य का इतिहास, त्रिवेणी, रसमीमांसा, जायसी, सूरदार, गो-तुलसीदास आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। सम्पादनकृहिन्दी शब्द सागर, भ्रमरगीत सार, जायसी ग्रन्थावली, तुलसी ग्रन्थावली, नागरी प्रचारिणी पत्रिका। निधन : 2 फरवरी, सन् 1941

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