SHUNYA KAL MEN ADIVASI: शून्य काल में आदिवासी

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Pyara Kerketta Foundation, Sep 1, 2017 - 106 pages
‘शून्यकाल में आदिवासी’ भारतीय समाज और राजनीति के उस भेदभावपूर्ण नजरिए की पड़ताल करता है जिसके शिकार आदिवासी जन आज तक बने हुए हैं। इसमें लेखक-संपादक ने संसद में आदिवासियों पर हुई बहस का विवरण, संयुक्त राष्ट्र संघ में आदिवासी दिवस और अधिकार संबंधी दस्तावेज, भारतीय प्रतिनिधिमंडल का बयान आदि पुरानी सामग्रियों को सारगर्भित भूमिका के साथ प्रस्तुत किया है।
 

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अंतर्राष्ट्रीय वर्ष अधिकारों अधिकारों के अनुच्छेद अनुबंध अन्य अपनी अपने आज आदिवासियों को आदिवासी लोगों के आर्थिक इन लोगों इस इसके उद्देश्य उनकी उनके उन्हें उपयोग एक एवं एशिया और कर करता है करते हैं करना करने के करने के लिए करेंगे का अधिकार का अधिकार है का अधिकार होगा किया किसी भी की के आदिवासी लोगों के लिए के साथ कोई क्षेत्रों गई गए गतिविधियों गया घोषणा जमीनों जाए जेनेवा जो तक तथा तरह तो था दुनिया के दूसरे देने देश देशों द्वारा धारा ध्यान नहीं ने पर परंपरागत प्रभावी प्रस्ताव प्राप्त बात भेदभाव मान्यता में मैं यह या रखने रहे हैं राजनीतिक राज्य राष्ट्र संघ राष्ट्रीय रूप से लागू लोग वाली वाले विकास विशेष वे शामिल शिक्षा संगठनों संबंधित लोगों संयुक्त राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ संसाधनों संस्कृति संस्थाओं सरकार सहयोग सांस्कृतिक सामाजिक सीमाओं सुनिश्चित सुरक्षा स्वतंत्र स्वास्थ्य हम ही हुए है और है कि हो होने

About the author (2017)

अश्विनी कुमार पंकज का जन्म 1964 में हुआ। रांची विश्वविद्यालय, रांची से कला स्नातकोतर। अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों-रंगकर्म, कविता-कहानी, आलोचना, पत्रकारिता एवं डॉक्यूमेंट्री में समान रूप से सृजन। झारखंड आंदोलन में सघन संस्कृतिकर्म। आदिवासी विषय इनके सृजनकर्म के केंद्र में है। कई नाटकों का मंचन, पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन और दो दर्जन से ज्यादा डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण। अब तक कहानी के 4, कविता की 6, नाटकों के 2, राजनीति पर एक, जयपाल सिंह मुंडा पर 3 और हिंदी में एक उपन्यास ‘माटी माटी अरकाटी’ प्रकाशित। यह उपन्यास 19वीं सदी की शुरुआत में झारखंड से मॉरिशस, फिजी आदि द्वीपों पर ले जाए गए आदिवासी गिरमिटियों पर केंद्रित है जिसमें मगही, भोजपुरी और नागपुरी भाषाओं का अद्भुत सृजनात्मक उपयोग हुआ है। नब्बे के शुरुआती दशक में जन संस्कृति मंच एवं उलगुलान संगीत नाट्य दल, रांची के संस्थापक संगठक सदस्य। फिलहाल लोकप्रिय मासिक नागपुरी पत्रिका ‘जोहार सहिया’, पाक्षिक बहुभाषी अखबार ‘जोहार दिसुम खबर’ और रंगमंच एवं प्रदर्श्यकारी कलाओं की त्रैमासिकी ‘रंगवार्ता’ का संपादन-प्रकाशन।

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