Sangeet RatnakarRadhakrishna Prakashan |
Contents
Section 1 | 7 |
Section 2 | 9 |
Section 3 | 19 |
Section 4 | 23 |
Section 5 | 43 |
Section 6 | 62 |
Section 7 | 66 |
Section 8 | 103 |
Section 10 | 119 |
Section 11 | 122 |
Section 12 | 126 |
Section 13 | 169 |
Section 14 | 240 |
Section 15 | 251 |
Section 16 | 260 |
Section 9 | 108 |
Common terms and phrases
अंगुल अंश अन्य अर्थ अर्थात् इन इस प्रकार इसका इसके पश्चात् इसमें उद्ग्राह उसे ऋषभ और कर करना करने कल्लिनाथ ने कहते हैं कहा जाता है कहा है कि का प्रयोग होता किंतु किया गया है किया जाता किया है की कुछ के बाद के साथ को गांधार गान गीत गुरु ग्रह चार छंद जाति जो तार ताल तीन तृतीय था दो द्रुत द्वारा द्वितीय धा धैवत ध्रुव नहीं है नाम नामक नि निषाद नी ने कहा है न्यास पंचम पद पहले पा प्रथम प्रबंध प्रयोग होता है भाषा भी भेद मध्यम मा मात्रा मूर्छना में यह यहाँ या युक्त ये रस राग री रूप में वर्जित वर्ण वह विकृति वीणा वैशिष्ट्य शब्द शार्ङ्गदेव ने श्रुति षड्ज संख्या संगीत संबंध में सब सा सिंहभूपाल से स्वर स्वरों ही हुए है एवं हैं हो होगा होता है होती होने पर