आकांक्षा

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OnlineGatha, Jan 9, 2016 - 40 pages

 उसका यूँ रूठ के जाना 

यूँ मुझसे दूर जाना 
खवाबों का टूट जाना 
उसका रूठ के जाना
यूँ मुझे रुलाना 
मेरा दिल दुखाना 
उसका रूठ के जाना 
यूँ मुझे सताना 
मेरी नींदे चुराना
उसका रूठ के जाना 
न मंजिल का पता
न मेरा ठिकाना
ये दिल है तन्हा 
हो जायेगा दीवाना 
वो ऑंखें नशीली 
वो चेहरा गुलाबी
उसके ख्यालों में
ये दिल है तन्हा
 

Contents

Section 1
5
Section 2
12
Section 3
13
Section 4
20
Section 5
26
Section 6
29
Section 7
33

Common terms and phrases

अपना अपने अब अाओो मनाये नववर्ष आँखों आई है आपकी आपके आपको उन्होंने उस रिश्तों को उसका रूठ के उसकी ऐसा लगता है और कभी कभी कभी थोडा कभी-कभी कमेरी प्रेमिका कर कह कर रह गयी करना का हुआ है की कोशिश कुछ के लिए को मैं क्या क्या नाम दूं खवाब खुशी चाँद जब से तुम्हे जिन्दगी जिसे जो तन्हा तुम्हे देखकर ऐसा तो थी थोडा ही सही दिल से दूर होकर भी देखकर ऐसा लगता धनजय चौधरी नववर्ष आाया नववर्ष का त्यौहार नहीं नाम दूं जिसमे पर पागल प्यार के बस बहुत बात भी धुआ मनाये नववर्ष का मिले में प्रेमी हूँ मेरे मैं क्या नाम याद ये दिल रख दिए रिश्तों को मैं रूठ के जाना वतन वर्ष का हुआ वो मेरी सी लगती हो सूरत से तुम्हे देखा हंस हंसी हमने हर हुआ है आगाज़ है जब है तुम्हे देखकर हो गया तेरी हो तुम होगा

About the author (2016)

 प्रिय पाठकों ,

प्रस्तुत पुस्तक “आकांक्षा” नित प्रतिदिन मन में उठते ढेर सारी इच्छाओं, कल्पनाओ, अकांक्षाओ और भावनाओ से कुछ शब्द को चुनकर उसे पंक्तियो में ढालते हुए कविताओ और शायरी का मूर्त रूप देने का प्रयास है |

आशा करता हूँ की मेरी यह कृति आपको पसंद आएगी |

आप अपने सुझाव या प्रतिक्रिया मुझे भेज सकते हैं |

                                                 धनंजय चौधरी 

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