जीओ! और जीने दो!: काव्य संग्रहकवि अपने इस काव्य संग्रह ‘‘जीओ! और जीने दो’’ में, वर्तमान में आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेशों में हो रहे विघटनों के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करता है। वह कहता है कि आज आम लोग सब तरह से प्रभावित एवं प्रताड़ित हो रहे हैं। उन्हें अनेकों तरह की यातनायें भुगतनी पड़ रही हैं। नैतिकता का घोर पतन हो गया है। कवि देश की स्वतंत्रता, एकता, अखंडता और सुरक्षा के प्रति सजग और सचेत है। वह चाहता है कि देश सभी क्षेत्रों में विकास करे, देश स्वावलम्बी बने, प्रगति की चोटी पहुंचे, आतंकवाद नष्ट हो एवं सीमायें सुरक्षित रहें। आज परीक्षणों के चलते धरती रह-रह कर कांपती रहती है। बमों के विस्फोटों से विश्व का पर्यावरण विनष्ट हो रहा है। जंगल कट रहे हैं। पर्वत टूट रहे हैं। नदियाँ और हवायें प्रदूषित हो रहीं हैं। लोग अनेकों बीमारियों से ग्रसित हो असमय मर रहे हैं। विश्व अभी भी ‘‘कोरोना’’ के चपेट में है। कितने करोड़ लोग मर चुके हैं। लाखों बीमार हैं। अभी भी लोग मर रहे हैं। भारत ने ‘‘कोरोना’’ की दवा ‘‘कोरोना वैक्सीन’’ तैयार कर ली है। आधुनिकता भले हीं आसमान की ऊंचाई को छू रहा हो, लेकिन विश्व का अस्तित्व खतरे में है। तीसरा विश्वयुद्ध कभी भी हो सकता है। |
Contents
1 | |
Section 2 | 3 |
Section 3 | 12 |
Section 4 | 14 |
Section 5 | 15 |
Section 6 | 22 |
Section 7 | 23 |
Section 8 | 24 |
Section 23 | 69 |
Section 24 | 70 |
Section 25 | 71 |
Section 26 | 72 |
Section 27 | 73 |
Section 28 | 88 |
Section 29 | 90 |
Section 30 | 93 |
Section 9 | 25 |
Section 10 | 26 |
Section 11 | 27 |
Section 12 | 28 |
Section 13 | 32 |
Section 14 | 33 |
Section 15 | 42 |
Section 16 | 44 |
Section 17 | 51 |
Section 18 | 55 |
Section 19 | 65 |
Section 20 | 66 |
Section 21 | 67 |
Section 22 | 68 |
Section 31 | 95 |
Section 32 | 96 |
Section 33 | 97 |
Section 34 | 101 |
Section 35 | 103 |
Section 36 | 106 |
Section 37 | 107 |
Section 38 | 108 |
Section 39 | 109 |
Section 40 | 110 |
Section 41 | 112 |
Section 42 | 113 |
Common terms and phrases
अपना अपनी अपने अब आओ आज आदमी इस उनके उन्हें उसकी उसके उसे एक ऐसा ओर कभी कर करते हैं करना करो कर्तव्य कहता कहाँ कहीं का काम कितने किसी की कुछ के केलिए कैसे को कोई कौन क्या क्यों गई गया है गये हैं घर चल चलते चाहिए जहाँ जा जागो जाता जाती जाये जायेंगे जायेगा जीवन जो तक तब तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थे देश दो धरती धर्म नहीं है ना नाम ने पर फिर भी फूल बंद बन बहुत भारत भी मन मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं यह या ये रहता रहते रहा है रही रहे हैं रहो लिए लेकिन लोग वह विरोध विश्व वे सत्ता सदा सब सबके सबको सबसे सभी साथ सारे सुख सूरज से सैनिक हम हमारा हमारे हमें हर हाथ ही हुआ हुए हूँ है और है कि है क्योंकि है लेकिन है सब हो गये होगा होता होते