जीओ! और जीने दो!: काव्य संग्रह

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Manojvm Publishing House, Feb 6, 2021 - Literary Criticism - 128 pages
कवि अपने इस काव्य संग्रह ‘‘जीओ! और जीने दो’’ में, वर्तमान में आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेशों में हो रहे विघटनों के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करता है। वह कहता है कि आज आम लोग सब तरह से प्रभावित एवं प्रताड़ित हो रहे हैं। उन्हें अनेकों तरह की यातनायें भुगतनी पड़ रही हैं। नैतिकता का घोर पतन हो गया है। कवि देश की स्वतंत्रता, एकता, अखंडता और सुरक्षा के प्रति सजग और सचेत है। वह चाहता है कि देश सभी क्षेत्रों में विकास करे, देश स्वावलम्बी बने, प्रगति की चोटी पहुंचे, आतंकवाद नष्ट हो एवं सीमायें सुरक्षित रहें। आज परीक्षणों के चलते धरती रह-रह कर कांपती रहती है। बमों के विस्फोटों से विश्व का पर्यावरण विनष्ट हो रहा है। जंगल कट रहे हैं। पर्वत टूट रहे हैं। नदियाँ और हवायें प्रदूषित हो रहीं हैं। लोग अनेकों बीमारियों से ग्रसित हो असमय मर रहे हैं। विश्व अभी भी ‘‘कोरोना’’ के चपेट में है। कितने करोड़ लोग मर चुके हैं। लाखों बीमार हैं। अभी भी लोग मर रहे हैं। भारत ने ‘‘कोरोना’’ की दवा ‘‘कोरोना वैक्सीन’’ तैयार कर ली है। आधुनिकता भले हीं आसमान की ऊंचाई को छू रहा हो, लेकिन विश्व का अस्तित्व खतरे में है। तीसरा विश्वयुद्ध कभी भी हो सकता है।
 

Contents

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Copyright

Common terms and phrases

अपना अपनी अपने अब आओ आज आदमी इस उनके उन्हें उसकी उसके उसे एक ऐसा ओर कभी कर करते हैं करना करो कर्तव्य कहता कहाँ कहीं का काम कितने किसी की कुछ के केलिए कैसे को कोई कौन क्या क्यों गई गया है गये हैं घर चल चलते चाहिए जहाँ जा जागो जाता जाती जाये जायेंगे जायेगा जीवन जो तक तब तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थे देश दो धरती धर्म नहीं है ना नाम ने पर फिर भी फूल बंद बन बहुत भारत भी मन मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं यह या ये रहता रहते रहा है रही रहे हैं रहो लिए लेकिन लोग वह विरोध विश्व वे सत्ता सदा सब सबके सबको सबसे सभी साथ सारे सुख सूरज से सैनिक हम हमारा हमारे हमें हर हाथ ही हुआ हुए हूँ है और है कि है क्योंकि है लेकिन है सब हो गये होगा होता होते

About the author (2021)

श्री मुनीन्द्र मिश्र हिन्दी तथा मैथिली साहित्य के स्थापित कवि एवं साहित्यकार हैं। हिन्दी भाषा में वे हैदराबाद के आकाशवाणी दूरदर्शन, कवि मंच एवं काव्य गोष्ठियों में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुके हैं।

हिन्दी तथा मैथिली भाषा में उनके एक-एक काव्य संग्रह क्रमशः ‘‘पग पग दीप जले’’ वर्ष 1994 में तथा ‘‘प्रगतिक पथ पर’’ वर्ष 2010 में हैदराबाद से प्रकाशित हो चुके हैं।

पिछले दिनों वर्ष 2017 में मानव जीवन से जुड़ी हुई कुल बाइस कहानियों का इनका एक विलक्षण मैथिली कथा संग्रह ‘‘क्रान्तिकारी डेग’’ हैदराबाद से ही प्रकाशित हुआ है जो पाठकों और साहित्यकारों के बीच काफी सराहा गया।

उनके हिन्दी काव्य संग्रह ‘‘पग पग दीप जले’’ को पब्लिक लाइब्रेरी हैदराबाद एवं राजा राममोहन रॉय लाइब्रेरी फाउंडेशन कोलकाता द्वारा वर्ष 1994 में आन्ध्र प्रदेश के सभी जिला ग्रंथालयों के लिए स्वीकृति मिल चुकी है। उक्त काव्य संग्रह पर उन्हें ‘‘विनायक राव विद्यालंकार राष्ट्रोत्थान साहित्य समिति, हैदराबाद’’ द्वारा वर्ष 1994 में ही ‘‘हिन्दी दिवस’’ के अवसर पर ‘‘यमुनाबाई हिन्दी लेखक पुरस्कार’’ से सम्मानित भी किया गया। ये ‘‘ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्य भी रह चुके हैं।

श्री मिश्र द्वारा रचित ‘‘मन से मन को’’ यह हिन्दी काव्य प्रस्तुति विश्व नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। स्त्री-पुरुष के बीच काव्यात्मक वार्तालाप से एक बड़ा ही भावुक व मनोरम दृश्य उपस्थापित कर नारी को ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति दर्शायी गयी है।

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