अंतरिक्ष नगर ( उपन्यास )

Front Cover
Onlinegatha - 49 pages

यह उपन्यास 1988 में प्रथम बार लिखा गया था। लिखने के बाद ऐसा लगा कि इसमें लिए गए वैज्ञानिक तथ्यों के संभावनाओं की पड़ताल कर ली जाए। ऐसा न हो कि यह कोरी कल्पना सिद्ध हो। फिर इस संदर्भ में कुछ वर्षों तक शोध करके वैज्ञानिक तथ्यों में सुधार किया गया। अब मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूँ कि इस पुस्तक में लिए गए वैज्ञानिक और तकनीकी तथ्यों के प्रामाणिक आधार हैं, या तो वे परिदृश्य में उपस्थित हैं, या फिर भविष्य में उपस्थित होने पूरी सम्भावना है।

 

Selected pages

Common terms and phrases

अंतरिक्ष अतररक्ष नगर अतैः अदर अनमत अपनी अपने अब अभी अमित आगे आप इस उसक उसकी ऊर्जा एक ऐसा और कछ कहकर का कि किया की आवाज की तरफ कुछ के के यान केबिन को कोई क्या गए गया था चिलगोंजा के जब जा जाए जो ठीक डॉ तक तथा तब तरह तरि तश्तरी तीन तुम तो थी थे दक दकया ददया दर दवा दिर दी दो दोनों नगर की नचलगोंजा नजर नडसजा नलए नवमल नष्ट नहा नहीं नेहा पंकज ने पकज पथ्वी पर पास फिर बटन बहुत बात बाद बार बोला भारत भी मगर मर मरी में मैं यह यान यान के रह रहा था रही थी राजीव रुबीना लगा लिया लेकिन लोग लोगों वह वापस विमल शिाली शेफाली सकता सब साथ सामने से स्क्रीन पर स्टशन हम हाथ ही हुआ हुई हुए हू हूँ है हैं हो गई हो गए हो गया होगा

Bibliographic information