संचेतना: Sanchetna‘संचेतना’मैं अपने सभी गुरूओं को समर्पित करती हूँ क्योंकि उन्हीं के सार्थक पालन-पोषण का मैं परिणाम हूँ और अपने अनुभव व अपने गुरूओं की दी गई दिशाओं तथा निर्देशों से जो सीखा, जो पाया आज वहीं संचेतना के रूप में उनकी गुरूदक्षिणा के रूप में समर्पित करती हूँ। लिखने की क्षमता का विकास मुझमें मेरी सबसे पहली गुरू मेरी माँ के प्रोत्साहन से हुआ। पापा ने हमेशा मेरे कृतित्व को सराहा एवं और अच्छा लिखने की प्रेरणा दी। मैं लिखती रही मगर मेरे लेखों को सही दिशा मेरी माँ श्रीमती प्रेमलता सूद व मेरे पापा डॉ. बलराज सूद ने दी जो सदा से मेरी प्रेरणा स्त्रोत व गुरु रहे हैं। ये सारे अनुभव मुझे उन्हीं की छत्र-छाया में मिले व उन्होंने पग-पग पर मेरा हाथ थामकर सदैव सुमार्गों की ओर प्रेरित किया। उनके बिना ‘संचेतना’कल्पनातीत थी। लेखन तो चलता रहा मगर कभी प्रकाशित नहीं हुआ। प्रकाशन की ओर से प्रेरित करने का श्रेय मैं श्री कपिल देव जी, पूर्व कप्तान भारतीय क्रिकेट टीम व 1983 विश्व कप विजेता को जाता है। भाग्य से उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा कि लिखती हो तो छपवाओं भी वरना लिखने का क्या फायदा जो दूसरों तक पहुँचे ही नहीं। एक दिन फोन पर उन्होंने इस पुस्तक के कुछ प्रसंगों को सुना और उसके बाद इसका रफ ड्राफ्ट मंगवाया पढ़ने के लिए और पढ़ने के बाद उन्होंने कहा कि यह पुस्तक माँ बाप के लिए गीता का काम कर सकती है जहाँ पर भी हो भटक जाए इसे खोलें और पढ़े तो उन्हें रास्ता अवश्य मिल जाएगा। मैं लिखती रही और समेटती रही मगर प्रकाशन की और न बढ़ सकी और फिर भाग्य देखिये कि संकल्प हिन्दी प्रसार अभियान द्वारा आयोजित अंतर्मन में आशीष गुप्ता जी से भेंट हुई और उनकी छोटी सी ज़िद से मेरे सपने पृष्ठों पर साकार हो रहे हैं। पहले ‘शालविका’और अब संचेतना....................... |