EklavyaSuruchi Prakashan - 24 pages |
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अपना अपनी अपने अर्जुन अर्जुन को अवश्य अश्वत्थामा आचार्य आप आपका आशीर्वाद इस उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसकी उसके उसने उसे एक एकलव्य की एकलव्य ने और कर दिया करते कहने लगा का कि किया की की ओर कुछ कुत्ता के लिए के साथ कैसे को कोई कौन क्या गये गुरु के गुरु द्रोणाचार्य गुरुदक्षिणा गुरुदेव गेंद चरणों जंगल जाता जैसे जो तथा तुम तुम्हारे तो देखकर देने द्रोण द्रोणाचार्य ने धनुर्धारी धनुर्विद्या नहीं नाम ने कहा पर परन्तु परम्परा पास पिता पुत्र पूछा प्राप्त फिर बहुत बाण बात बालक को भी भील भीष्माचार्य मन माँ मुँह मुझे मेरी मेरे गुरु मैं यदि यह यही रहा था रहे थे राजकुमार राजकुमारों राजा रूप लगे लिये वचन वन में वनवासी वह विद्या विश्व वीर वे शिक्षा सभी समय साधना सुनकर से से ही सोचने स्मरण स्वीकार हस्तिनापुर हाथ ही हुआ हुए हुये हूँ हृदय है हैं होकर