Bharat Parichay Prashn ManchSuruchi Prakashan - 140 pages शताब्दियों तक हमारे देश पर विदेशी आक्रमणकारियों का अवांछित आधिपत्य रहा। उन्होंने सर्वप्रथम हमारी शिक्षा, संस्कृति व परम्पराओं को नष्ट करने का प्रयास किया। प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था के ध्वस्त हो जाने से भावी पीढ़ियों को शिक्षित होने के अवसर सीमित होने लगे। इसके कारण हमें अपने राष्ट्र, समाज, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान एवं कला, साहित्य, इतिहास, धर्म, दर्शन इत्यादि के बारे में जानकारी केवल अपने कुल व ग्राम-परिवेश की कथाओं-प्रथाओं से ही सीमित रूप में मिल पाती थी। ज्ञान की ज्योति जलाने वाले कुछ सीमित दीपस्तम्भ ही शेष थे। अज्ञान से भ्रान्तियों व शंकाओं का जन्म होता है और इसके साथ अन्धविश्वास, कुरीतियाँ व कदाचार भी पनपने लगते हैं। इस आत्मपरिचयहीनता व आत्मदीनता के अन्धकार को मिटाने हेतु अनेक आत्मबोध जगाने वाले प्रयास किये गये ताकि हमारी वैभवशाली परम्परा भारत में पुनः प्रस्थापित हो। उसके फलस्वरूप हमारा प्राचीन साहित्य तथा उस पर आधारित बहुविध साहित्य प्रचुर मात्रा में अब भी भारत में विद्यमान है जिसके अधिकाधिक प्रसार के प्रयत्न भी राष्ट्रप्रेमियों द्वारा किये जा रहे हैं। उसी के माध्यम से हमारी संस्कृति व परम्परा का हमारी नयी पीढ़ी से साक्षात्कार हो सका है। ऐसा ही साक्षात्कार कराने का प्रयत्न लेखक व शिक्षाविद् डॉñ हरिश्चन्द्र बथ्र्वाल ने इस पुस्तक में प्रश्नोत्तरी के माध्यम से किया है। |
Common terms and phrases
अतिरिक्त अथर्ववेद अधिक अनेक अन्य अपने अर्थात् आयुर्वेद इत्यादि इन उनके उपनिषद् उस उसके ऋग्वेद एक एवं ऐसे और कर करके करते करना कहते हैं कहलाते कहा का काल कितने किन्तु किया किस किसी की कुछ के कारण के नाम के पश्चात् के रूप में के लिए के साथ को कोई कौन क्या है गया है गये हैं ग्रन्थ चार जाता है जाती जाने जैसे जो तक तथा तो था थी थे दर्शन दिन दिया देश दो द्वारा नक्षत्र नहीं ने पक्ष पर पुराण पूर्व पृथ्वी प्रकार के प्रथम प्रशन प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध भगवद्गीता भाग भारत भारतीय भी मन्त्र महाभारत मास में में भी यजुर्वेद यह या युद्ध ये राजा रामायण रावण राष्ट्र वर्ष वह वाले विष्णु वे वेद वेदान्त वैदिक शिक्षा शिव संस्कृति सबसे सभी सम्प्रदाय सहस्र सात सिख सूर्य से ही हुआ हुई हुए है है और है कि हैं हो होता है होती होते हैं होने