Anunad: अनुनादBook Bazooka, Nov 27, 2017 - 100 pages दुनियावी जटिलताओं को सुलझाने के लिए दौड़ते हुए जब एक पाँव के जूते का तस्मा खुलकर दूसरे पाँव के जूते में उलझ जाता है, तब जीवन के मायने तलाशने की आपाधापी शुरू हो जाती है। अँधेरी गलियों में कविताओं की लालटेन जब जलती है, उसकी रोशनी में तमाम वो चीजें आलोकित हो जाती है जो उपेक्षित और निर्वासित हो चली थी। साइकिल की घंटी चुटकी में तानपुरा बनकर गूँजने लगती है जिसका 'अनुनाद' पीढ़ियों तक मुखरित होता है। ऐसी ही लालटेन है सुमित गौतम का काव्य संग्रह 'अनुनाद'। |
Contents
धुंध | 54 |
जाने कब | 55 |
सॉसे आगे निकल रही | 56 |
अच्छा लगता है | 57 |
मुस्कराते गुनगुनाते | 58 |
संस्कृति | 59 |
संघर्ष | 61 |
कवि गीत | 65 |
शिकायतें | 78 |
मैं और तुम | 80 |
आज फिर मैं मुस्कुराऊँगा | 82 |
हमको अब छुटकारा दो | 84 |
विज्ञान और कविता | 86 |
क्या मिला | 89 |
तुम | 90 |
प्यार अभी भी बाकी है | 92 |
आदमी को आदमी की तरह जीने दो | 67 |
जरा सी जिदंगी मुझे उधार दो | 68 |
शहर भी हिन्दू और मुसलमान होता है | 71 |
मेरा गॉव | 72 |
प्रीत अधूरी गीत अधूरे | 75 |
खालीपन | 77 |
इंतजार | 93 |
तुम्हारी याद | 94 |
मेरी कहानी | 95 |
मुक्तक | 96 |
जीवन का उपहार | 99 |
Common terms and phrases
अपना अपनी अपने अब अभी भी बाकी आज आदमी की तरह आदमी को आदमी आधा आस इस उधार दो उस एक ऑखों और कबीरा कभी कर का कुछ के को कोई कौन क्या मिला उनकी खुद को गया गयी गीत घर चाहिए छोड़ जब जरा जा रहा है जाऊँगा जाना जीवन जो तक तब तरह जीने दो तुम तुमने तुमसे तुम्हारी तू तेरा तो था थी थे दिया दूर दे दो धर्म न भारी पड़ नई नही नहीं नहीं है ना ने पर पल पाया पीछे प्यार प्रेम फिर बन बस बात भारत भारी पड़ जाये भी बाकी है भूल मन माँ मिला उनकी जिन्होंने मीरा मुझको मुझे भी मुसलमान में मेरा मेरी मेरे मैं यह याद ये रंग रही रहे रात राम राह लो वह वही वो शहर शायद सब साथ सारी सी से स्वप्न हम हमको हर हिन्दू ही हुआ हूँ हैं हो गये होगा होता है होने