अद्भुत काव्यांजलि (Hindi Sahitya) Adbhut Kavyanjali (Hindi Poetry)मैं अपना बड़ा सौभाग्य समझता हूँ कि ’एक अदभुद् काव्यांजलि’ जो आप सभी सुधी पाठकों के हाथ पहुँची है इसके प्रकाशन के लिए बहुत माथा पच्ची करने के बाद यह कार्य सम्भव हो पाया है। फिर भी इस पुस्तक में जो कुछ देख रहे हैं वह आपको अन्य पुस्तकों से विलक्षण शैलियों को छूने का प्रयास किया है जबकि काव्य मीमांसा से पूर्ण रूप में अनभिज्ञ और अनजान हूँ। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास कृत मानस रामायण से पाँच चौपाइयाँ मेरी असलियत की सउदाहरण सत्य एवं सटीक बैठने में कोर कसर छोड़ने में कमजोर नहीं हैं। 1. कवित विवेक एक नहिं मोरे। सत्य कहहुँ लिखि कागद कोरे। 2. कवि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप स्वयम् गुण गावहुँ। 3. निज कवित्त केहि लाग न नीका। सरस होय अथवा अति फीका। 4. जे पर भनति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं। 5. कीरति भनित भूति भल सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई। अर्थात्- (1) कविता लिखने का न तो विवेक है और न ही लिखने का तरीका सही है जो मैं कोरे कागज पर लिखकर सत्य ही कह रहा हूँ। (2) अर्थात न मैं कवि हूँ न चतुर सुजान हूँ बस अपनी मति के द्वारा काव्य रचना की है। 3) अपनी कविता सबको अच्छी लगती है चाहे सरस हो या नीरस जैसे अपनी कविता अपनी औलाद के समान-और दूसरे की कविता भावी दामाद की तरह होती है। (4) जो दूसरों की कविता सुनकर खुश होते हैं ऐसे उत्तम पुरुष संसार में कम होते हैं। (5) कीर्ति और कविता और कंचन (धनी) सराहनीय है जिनसे गंगाजल के समान सभी का हित हो। इस प्रकार से जो हमने अपनी मती गती से काव्य कृती में स्वान्तः सुखाय की दृष्टि से जो अक्षर उकेरे हैं वह कहीं तक आत्मरंजन से मनोरंजन तक प्रासंगिक एवं सराहनीय ही होंगे। इसी आशा के साथ आपका अपना... शिवमंगल सिंह चन्देल ‘स्वयम् चौबेपुरी’ |