ओड़िया दलित कहानियाँ

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Onlinegatha, 2013 - Dalits - 154 pages

 “तुम कल आई क्यों नहीं?” बडे ही असंतोष लहजे में पूछा था रूबी ने।

दीपा आंगन में कपड़े सुखाते हुए कहने लगी, “मेरे ससुराल वाले आए थे कल।” रूबी ने जितना ज्यादा गुस्से का इजहार किया था, दीपा के उत्तर से उतनी ही जल्दी शांत हो गई। मन ही मन सोच रही थी कि इसलिए ही दीपा को रखने से पहले मन गवाही नहीं दे रहा था। शादी होने के बाद लड़की के कितने दिन तक अपने पति और ससुराल वालों को छोडकर पिता के घर आकर काम-धंधा करने से चलेगा? एक वर्ष पहले मिसेज राव ने जुगाड़ किया था दीपा का। पहले दिन से ही जान-पहचान वालों की तरह आकर हंस-हंसकर नमस्कार किया था दीपा ने। “दीदी मुझे पहचानती हो? मैं मूर्तिबाबू के घर काम करती थी। बचपन में। आपके घर तब अहिल्या काम करती थी।”
 

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अगर अच्छा अपना अपनी अपने अब आई आदमी इस उस उसका उसकी मां उसके उसको उसने उसे एक ऐसे और कभी कर करके करती करने कह कहने लगी कहा कहां का काम कि किया किसी की तरह कुछ कुछ भी के घर के पास के बाद के लिए के साथ को कोई क्या क्यों गई थी गया था गांव घर में चली चाय जा जाता जाती थी जाने जैसे जो झूमका तक तब तरफ तुम तुम्हारे तो थे दिन दे देखकर देखा देती दो नहीं था नहीं है नीपा ने पता नहीं पर पहले फिर बहन बहुत बार बाहर भी भी नहीं मगर मन माँ मालती मिश्री मीरा मुझे मेरा मेरी मेरे मैं मैने यह या रहा था रहा है रही थी रूबी लगा ले लेकर लोग वह वे सब समय साड़ी सुपर्णा से स्कूल हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ हैं हो गई हो गया होने szeGazzzfizaz.Co711

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