भारत निकला गाँव से: Bharat Nikla Gaon Se

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Book Bazooka Publication, Feb 4, 2020 - Poetry - 72 pages

हम हैं इस मिट्टी के छौने हमें कुलांचें भरने दो,

बंद गली के बंद दरबाजे वो घर तुम्हें मुबारक हो । ।

अंधकारमय हो जीवन जिस जाति धर्म के बंधन में,

कितना भी सुन्दर हो, वो तुमको संसार मुबारक हो ।

जहाँ ठेकेदार धर्म के हों, और हो दलाल भगवंता के,

नारी है उपभोग समझते, हो बिचार उस जनता के ।

ऐसे धर्म समाज को मैं, ठोकर मार अभी दूँगा,

लेकिन बेटे की चाहत में, बेटी को विष नहीं दूँगा ।?

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Selected pages

Common terms and phrases

अधिकार अपनी अपने अब अमन अाँखों आग आना इक इन इश्क इस उन्हें उस एक और कई कभी कर कलम कहते हैं कहीं का किया की कुछ के के लिए कैसे को कोई कौन क्या क्यों खुद गए गया गयी गाँव घर चले चलो जब जब भी जरूरत जल जहाँ जाता जाती हैं जाते जीवन जो डर तक तन तब तुम तुमको तुम्हारा है तुम्हें तो था थे दिए दिन दिया दिल दी दुनियाँ दू देख देखो दो दोगे धरती धर्म न था नजर आएगा नहीं ना ने पता पर पे प्यार फिर बच्चे बना बस बात ही कहाँ भारत का भूखे मत मन माँ मानव मानवता मुझे में भी मेरा मेरी मेरे मैं यह यहाँ ये रहते रहे रात लिखते हैं लोग वही वाले वो शब्द शहर सच सब समाज साथ सूरज से हम हम हैं हमें हर ही कहाँ थी हूँ है हैं हो होता

About the author (2020)


नाम: राकेश कुशवाहा

जन्मतिथि: ०९ जुलाई १९८७

पिता: श्री मथुरी प्रसाद

माता: श्रीमती गोमती देवी

जीवन संगनी: अनीता

शिक्षा: कृषि स्नातक - जिला परिषद कृषि महाविद्यालय बाँदा, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी ।

व्यवसाय: प्रबंधक (जैव विविधता, वानिकी एवं उद्यानिकी)

पता: ग्राम खुर्द, पोस्ट कुरथर, तेह- लहार, जिला भिंड, मध्यप्रदेश-477449

गुरु जी: पंकज सिंह परिहार, पुरोषत्तम दीबोलिया

विशेष आभार: भास्कर गुप्ता, फ़ुजैल अहमद, रिज़वान सिद्दीकी

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