संपूर्ण क्षितिज: Sampurn Kshitijमोनिका जी की धर्म में रुचि होने के कारण संस्कृत और भगवतगीता बच्चों को सिखाने के लिए भी प्रयासरत है। उनके धार्मिक विषयों पर लेख दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं। धर्म में अत्यधिक रुचि होने से मन मे उतरे प्रभु के प्रति प्रेम को छोटी-छोटी कविता के माध्यम से सम्पूर्ण क्षितिज पुस्तक मे उतारने प्रयास है। आशा है आप इस पुस्तक को अपना प्यार देंगे। |
Common terms and phrases
अपनी अब आ जा रे आँखे आनंद आप आम आलिंगन एक बार एक बार फिर ओम नमः शिवाय और कभी कर कर तो का कि कुछ नहीं के लिए केवल को क्या क्षितिज खुद को खुशी खो गई मैं तुम्हारी गए चले चलो चाँद जब जरा जा रे आ जाती है जाने जीवन जो तुझे तुम्हारी मोहब्बत में तू तू ही तेरा तेरी याद आई तेरे दर्शन दिन दिल देख देखकर नमः शिवाय ओम नही नहीं है ना पर पास प्यार प्रभु की प्रभु तुम मेरे प्रभु प्रेम प्रभु मेरे प्रेम प्रेम की फिर तेरी याद बस बात भी नहीं मंदिर मन मुझ में मुझे मेरा मेरी मैं तुम्हारी मोहब्बत मोना मोहब्बत में गुम मौन ये रही रहे रे आ प्रभु रे प्रभु लगता है लूँ ले वो शिवाय ओम नमः सब सा साथ सिर्फ सुन से हर ही हुआ हुई हूँ है मेरे हैं हो गई मैं होती