Nakshatra LokRajkamal Prakashan Pvt. Limited, Sep 1, 2003 - 100 pages हमारी आकाश-गंगा में करीब 150 अरब तारे हैं और ज्ञात ब्रह्मांड में हैं ऐसी अरबों आकाश-गंगाएँ ! तो क्या अखिल ब्रह्मांड में नक्षत्रों या तारों की संख्या का अनुमान भी लगाया जा सकता है ? असंभव। फिर भी अनजाना नहीं है हमसे हमारा यह नक्षत्र-लोक। पिछले करीब डेढ़ सौ वर्षों की खगोल-वैज्ञानिक खोजों ने नक्षत्रों के बारे में अभूतपूर्व तथ्यों का पता लगाया है - उनकी सबसे कम और अधिक की दूरियाँ, तात्विक संरचना, ज्वलनशीलता और उनके हृदय में लगातार होती उथल-पुथल - कुछ भी तो रहस्यमय नहीं रह गया है। उनका एक जीवन है और अपने आपसे जुड़ी ‘दुनिया’ में एक सार्थक भूमिका भी। लेखक के शब्दों में तो ”ये जन्म लेते हैं, तरुण होते हैं, इन्हें बुढ़ापा आता है और अंत में इनकी ‘मृत्यु’ भी होती है !“ अपने विषय के प्रख्यात विद्वान और सुपरिचित लेखक गुणाकर मुले ने पूरी पुस्तक को परिशिष्ट के अलावा छः अध्यायों में संयोजित किया है। ये हैं - तारों-भरा आकाश, नक्षत्र-विज्ञान का विकास, आकाशगंगा: एक विशाल तारक-योजना, तारों का वर्गीकरण, तारों का विकास-क्रम तथा प्रमुख तारों की पहचान। परिशिष्ट में उन्होंने आकाश में सर्वाधिक चमकनेवाले बीस तारों की विस्तृत जानकारी दी है और कुछ प्रमुख आँकड़े भी। तारों के इस वैज्ञानिक अध्ययन की मूल्यवत्ता और उद्देश्य के बारे में यदि लेखक के ही शब्दों को उद्धृत करें तो तारों की ”एक वैज्ञानिक भाषा है। इस भाषा को आज हम समझ सकते हैं। यह भाषा है - तारों की किरणों की भाषा ! अपनी किरणों के माध्यम से तारे स्वयं अपने बारे में हम तक जानकारी भेजते रहते हैं। यह जानकारी हमें फलित-ज्योतिषियों की पोथियों में नहीं, बल्कि वेधशालाओं की दूरबीनों, वर्णक्रमदखशयों और कैमरों आदि से ही प्राप्त हो सकती है।“ साथ ही ”मानव-जीवन पर नक्षत्रों के प्रभाव को जन्म-कुंडलियों से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक उपकरणों से जाना जा सकता है।“ कहने की आवश्यकता नहीं कि यह पुस्तक न केवल हमारे ज्ञान-कोष को बढ़ाती है, बल्कि हमारा वैज्ञानिक संस्कार भी करती है। |