Hindi Ki Shabd Sampada

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Rajkamal Prakashan, Jan 1, 2009 - Hindi language - 291 pages
ललित निबन्ध की शैली में लिखी गई भाषाविज्ञान की यह पुस्तक अपने आपमें अनोखी है। इस नए संशोधित-संवर्द्धित संस्करण में 12 नए अध्याय शामिल किए गए हैं और कुछ पुराने अध्यायों में भी छूटे हुए पारिभाषिक शब्दों को जोड़ दिया गया है। जजमानी, भेड़-बकरी पालन, पर्व-त्यौहार और मेले, राजगीर और संगतरास आदि से लेकर वनौषधि तथा कारखाना शब्दावली जैसे जरूरी विषयों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है। अनुक्रमणिका में भी शब्दों की संख्या बढ़ा दी गई है। बकौल लेखक: ‘‘यह साहित्यिक दृष्टि से हिन्दी की विभिन्न अर्थच्छटाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता की मनमौजी पैमाइश है: न यह पूरी है, न सर्वांगीण। यह एक दिङ्मात्र दिग्दर्शन है। इससे किसी अध्येता को हिन्दी की आंचलिक भाषाओं की शब्द-समृद्धि की वैज्ञानिक खोज की प्रेरणा मिले, किसी साहित्यकार को अपने अंचल से रस ग्रहण करके अपनी भाषा और पैनी बनाने के लिए उपालम्भ मिले, देहात के रहनेवाले पाठक को हिन्दी के भदेसी शब्दों के प्रयोग की सम्भावना से हार्दिक प्रसन्नता हो, मुझे बड़ी खुशी होगी।’’
 

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Common terms and phrases

अधिक अनाज आता है आदि आभूषण आम इस इसका इसके इसे उपयोग उसके उसे एक प्रकार की ओर औजार कई कपास कर करना करने कहते हैं कहलाता है कहा जाता है कही जाती का एक काम में किया जाता की की एक कुछ के ऊपर के काम के नीचे के बाद के बीच के लिए के साथ को क्रिया खूँटी खेत गई गाय गोल घर चावल छोटी जगह जब जाते हैं जाना जिस जिसमें जो तक तथा तरह तैयार तो दिन दिया दे दो दोनों द्वारा धान नहीं नाम नाव पर पहले पानी प्रयोज्य अंग फल फसल फिर फूल बहुत बाँस बीज बैल भाग भी भी कहते हैं भेड़ भैंस मिट्टी मिठाई मुँह में यंत्र यह या रंग रस्सी रहता है रहती रोग लकड़ी लाल वह वाला वाली वाले विवाह सफेद समय से स्वाद हवा हाथ ही हुआ हुई है और है तो हो होता है होती होते हैं होने

About the author (2009)

जन्म: मकर संक्रांति, 1982 वि., गाँव पकड़डीहा, जिला गोरखपुर। प्रारंभिक  शिक्षा गाँव में, माध्यमिक शिक्षा गोरखपुर में, संस्कृत की पारंपरिक शिक्षा  घर पर और वाराणसी में। 1945 में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में  एम.ए.। हिंदी साहित्य सम्मेलन में स्वर्गीय राहुल की छाया में कोश-कार्य,  फिर पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी की प्रेरणा से आकाशवाणी में कोश-कार्य,  विंध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सूचना विभागों में सेवा, गोरखपुर  विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय और आगरा विश्वविद्यालयों में क्रमशः  अध्यापन संस्कृत और भाषा-विज्ञान का। 1960-61 और 1967-68 में कैलीफोर्निया  और वाशिंगटन विश्वविद्यालयों में अतिथि अध्यापक। केंद्रीय हिंदी संस्थान,  आगरा के निदेशक, काशी विद्यापीठ तथा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय,  वाराणसी के कुलपति-पद से निवृत्त होने के बाद कुछ वर्षों के लिए नवभारत  टाइम्स, नई दिल्ली के संपादक भी रहे।

कृति संदर्भ: शेफाली झर रही है, गाँव का मन, संचारिणी, लागौ रंग हरी,  भ्रमरानंद के पत्र, अंगद की नियति, छितवन की छाँह, कदम की फूली डाल, तुम  चंदन हम पानी, आँगन का पंछी और बनजारा मन, मैंने सिल पहुँचाई, साहित्य की  चेतना, बसंत आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं, मेरे राम का मुकुट भीग रहाहै,  परंपरा बंधन नहीं, कँटीले तारों के आर-पार, कौनतू फुलवा बीननि हारी,  अस्मिता के लिए, देश, धर्म और साहित्य (निबंध-संग्रह); दि डिस्क्रिप्टिव  टेकनीक ऑफ पाणिनि, रीतिविज्ञान, भारतीय भाषा-दर्शन की पीठिका, हिंदी की  शब्द-संपदा (शोध); पानी की पुकार (कविता-संग्रह); रसखान रचनावली, रहीम  ग्रंथावली, देव की दीपशिखा, आलम ग्रंथावली, नई कविता की मुक्तधारा  (सम्पादित)।

निधन: 14 फरवरी, 2005

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