Bharatiya Vaigyanik: Bestseller Book by Krishna Murari Lal Srivastava: Bharatiya Vaigyanik

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Prabhat Prakashan, Jan 1, 2009 - Biography & Autobiography - 340 pages
सृष्टि के आरंभ से लेकर आज तक की चमत्कृत कर देनेवाली वैज्ञानिक उपलब्धियाँ हममें विज्ञान के बारे में अद्भुत जिज्ञासा भरती रही हैं। वैज्ञानिक प्रगति ने विश्व भर में नित नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। एक से बढ़कर एक वैज्ञानिक नई-नई खोजों से हमें चौंकाते रहे हैं। इनमें भारतीय वैज्ञानिकों का महत्व प्राचीन काल से ही विशेष रूप से रहा है और इनपर हमें अपार गर्व है।

बात प्राचीन काल की करें या अर्वाचीन की, भारत के वैज्ञानिक सभी क्षेत्रों में सदैव अग्रणी रहे हैं। आयुर्वेद, खगोल, रसायन, धातु विज्ञान शरीर शास्त्र सौर ऊर्जा, अंतरिक्ष विज्ञान तथा परमाणु ऊर्जा आदि विज्ञान की सभी शाखा-प्रशाखाओं और खोजो मे भारतीय वैज्ञानिकों का योगदान प्रशसनीय रहा है।

प्रस्तुत पुस्तक हमारे वैज्ञानिकों के व्यक्तत्वि और कृतित्व से छात्रों, अध्यापकों और अनुसंधित्सुओं को परिचित कराने में पूर्णतः सक्षम है। इनके परिचय चित्रमय होने से इनकी प्रेरणा व आकर्षकता और भी बढ़ जाती है।

 

Common terms and phrases

अंतरराष्ट्रीय अधिक अध्ययन अनुसंधान अनेक अन्य अपना अपनी अपने आदि आप आपको आपने आयुर्वेद इंग्लैंड इंडियन इन इस प्रकार उत्तीर्ण उनका उनकी उनके उन्होंने एंड एक एम एवं एस ऑफ और कई कर करते करने के कलकत्ता का कार्य किया किया गया किया था किया है की कुछ के अध्यक्ष के रूप में के लिए के सदस्य कॉलेज को क्षेत्र में गई गणित ग्रंथ चिकित्सा जन्म जर्मनी जीवन जो ज्ञान डी डॉ तक तथा तो था थी थे दिया देश दो द्वारा नहीं नाम ने ने उन्हें पद पर पर परिषद् परीक्षा पुरस्कार प्रकाशित प्रथम प्रदान किया प्राप्त प्रो प्रोफेसर बहुत बाद बी भाग भारतीय भी भौतिकी महत्त्वपूर्ण में में उन्होंने में भी यह रहे राजस्थान राष्ट्रीय वर्ष वह विकास विज्ञान विभाग विभिन्न विश्व विश्वविद्यालय में विषय वैज्ञानिक शिक्षा संयुक्त राज्य अमेरिका संस्थान सन् समय सांख्यिकी साहा से सोसाइटी ही हुई हुए है है कि हैं हो होने

About the author (2009)

कृष्‍‍णमुरारी लाल श्रीवास्तव जन्म : 7 सितंबर, 1931 शिक्षा : एम.ए., बी.एड., साहित्यरत्‍न । अल्पायु में हो पिता का स्वर्गवास हो जाने से बचपन ननिहाल में ही बीता । नाना- नानी को आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण इन्हें और इनकी माता कों परिवार के भरण-पोषण के लिए कठोर संघर्ष करना पड़ा । अध्ययन - अध्यापन के प्रति प्रारंभ मे ही अत्यधिक लगाव होने के कारण सन् 1956 में राजस्‍थान तहसीलदार सेवा में चयन हौ जाने के बावजुद राजस्‍व विभाग में नहीं गए । लगभग 39 वर्ष तक अध्यापन - कार्य से संबद्ध रहे। 30 सितंबर 1989 को 58 वर्ष की आयु में उपप्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त‌ि के उपरांत बाल मंदिर महिला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय जयपुर में व्याख्याता और फिर प्रधानाचार्य बने। श्री भवानी शंकर शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय, नारायणपुर (अलवर) में भी प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत रहे। संप्रति : वर्तमान में लेखन-कार्य में प्रवृत्त हैं। पता : 111/276, अग्रवाल फार्फ, मानसरोवर, जयपुर - 302020

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