Aakash PakshiRajkamal Prakashan, Jan 1, 2003 - 218 pages वरिष्ठ कथाकार अमरकान्त का यह उपन्यास एक निर्दोष और संवेदनशील लड़की की कथा है, जिसके इर्द-गिर्द भारतीय सामन्तवाद के अवशेषों की नागफनियाँ फैली हुई हैं। उनका कुंठाजनित अहंकार, हठधर्मिता और सर्वोच्चता का मिथ्या भाव उसकी सहज मानवीय इच्छाओं और आकांक्षाओं को बाधित करता है। भारतीय समाज से सामन्तवाद के समाप्त होने के बावजूद अपने स्वर्णिम युगों का खुमार एक वर्ग विशेष में लम्बे समय तक बचा रहा, और आज भी जहाँ-तहाँ यह दिखाई पड़ जाता है। गुजरे जमानों की स्मृतियों के सहारे जीते हुए ये लोग नए समय के मूल्यों-मान्यताओं को जहाँ तक सम्भव हो, नकारते हैं, और उनकी शिकार होती हैं वे नई नस्लें जो जिन्दगी और समाज को नए नजरिए से देखना, जानना और जीना चाहती हैं। इस उपन्यास की पंक्तियों में बिंधी व्यथा उन लोगों के लिए एक चेतावनी की तरह है जो आज भी उन बीते युगों को जीने की कोशिश करते हैं। |
Contents
Section 1 | 5 |
Section 2 | 7 |
Section 3 | 14 |
Section 4 | 19 |
Section 5 | 39 |
Section 6 | 46 |
Section 7 | 69 |
Section 8 | 83 |
Section 9 | 105 |
Section 10 | 121 |
Section 11 | 130 |
Section 12 | 173 |
Section 13 | 189 |
Section 14 | 198 |
Section 15 | 212 |
Section 16 | |
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Common terms and phrases
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