Ajane Melon Mein

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Hind Yugm, Apr 24, 2014 - Hindi literature - 208 pages

 विधाओं के पारंपरिक बंधाव और बुनावट को मुँह बिराती, इस संग्रह की रचनाएँ जानी-पहचानी हिंदी की दुनिया में मानो एक किस्‍म का छापामार घुसपैठ हैं। यहाँ आधुनिक लोककथाएँ हैं, रूपक हैं, पलक झपकते में खत्‍म होती छोटी, और दूर तक एक तिलिस्‍मी भावलोक के धुँधलके जंगल में दौड़ती लंबी कहानियाँ हैं; संस्‍मरण हैं, व्‍यंग्‍य हैं और कविता के आभासी कैनवस पर उजास नज़ारों के भित्तिचित्र हैं। मगर भाव और विचार की इस मार्मिक रंगनगरी की दस दिशाओं व सौ दुनियाओं में एक साथ दीवाना भागे चलते रचनासंसार को आपस में जोड़ने वाला जो प्राथमिक अंतर्सूत्र है, वह है हमारे समय व समाज, और इस बीहड़ वक़्त के परतदार मन की एक अंतरंग जासूसी। अपनी कहन और भाषिक सरंचना में इस पुराने और रोज़ नई चोटों में बिसराये जाते जुबान हिंदी से दिलतोड़ फुसफुसाहटें बुनने की एक रागात्‍मक कोशिश। अजाने मेलों में समय व भाषा के गड्ड-मड्ड में इन सबकी मिली-जुली, हमारे मनों पर छूट गई कुछ सिनेमा-सी, खोज है।

 

Common terms and phrases

अच्छा अपना अपनी अपने अब अभी अम्मा आई आगे आदमी इतना इस उस उसकी उसके उसे एक ऐसा ऐसी ऐसे और औरत कभी कर करके करता करती करते करने कहा कहाँ कहीं का काम किताबों किया किसी की कुछ के बाद के लिए को कोई क्या क्यों खुद गई गए गया गाँव घर जब जवाब जा जाता जाती जाते जाने जी जीवन जैसे जो तक तब तरह तुम तो था थी थे दिन दिया दीदी दुनिया देख दो नहीं नहीं है ने नै पता पर पहले पानी पीछे फिर बहुत बात बाबूजी बाहर बिल्ली बीच भर भी भी नहीं भैया मगर मन मनोज मुँह मुझे मुन्नी में मेरी मेरे मैं मैंने यह यहाँ या ये रहता रहती रहते रहा है रही रहे हैं रात लगता लड़की ले लेकिन वह सब सवाल साड़ी से हम हाथ हिंदी ही हुआ हुई हुए हूँ है कि हो होगा होता होती होने

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