Bade Ghar Ki Beti

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Rajkamal Prakashan, Jan 1, 2011 - Children's stories, Hindi - 24 pages
NA
 

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अपनी अपने अब आँखें आकर आज आनन्दी ने आप आया इतना इन इलाहाबाद इस इस घर में इसलिए इसी उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उसकी उसके उसने उसी उसे ऋण एक दिन ऐसा ऐसी ओर और कई कभी कर करते थे करना कहा कहाँ का काम किया किसी कुछ के को कोई क्या क्यों क्रोध खड़ाऊँ गए गाँव में घर की बेटी घी चाहते जब जाए जाता जिस जो ठाकुर तक तरह तो था कि थी थे दरवाजे दिया देते दो दोनों न था नहीं पर पीछे बड़े घर की बहुत बात पर बातें बाप बाहर बेनीमाधव सिंह बोला बोले भर भाई भी भैंस भैया मन मांस में मुँह मुझे मेरा मेरी मेरे मैं मैंने मैके यदि यह यहाँ यही या रहा रही लगा लालबिहारी ने लालबिहारी सिंह लिया वह वहाँ शनिवार श्रीकंठ श्रीकंठ सिंह सब समय सिर स्त्रियों स्त्री हाथ ही हुआ हुई हूँ है हैं हो गया होती

About the author (2011)

प्रेमचन्द (1880-1936) का जन्म बनारस के पास लमही गाँव में हुआ था। उस समय उनके पिता को बीस रुपए तनख्वाह मिलती थी। जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब वे पन्द्रह साल के हुए, तब उनकी शादी कर दी गई और सोलह साल के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया। जैसाकि लोग कहते हैं - लड़कों की यह उम्र खेलने-खाने की होती है लेकिन प्रेमचन्द को तभी से घर सँभालने की चिन्ता करनी पड़ी। तब वे नवें दर्जे में पढ़ते थे और उनकी गृहस्थी में दो सौतेले भाई, सौतेली माँ और खुद उनकी पत्नी थीं। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अनेक प्रकार के संघर्षों से गुजरते हुए उन्होंने 1919 में अंग्रेजी, फारसी और इतिहास लेकर बी.ए. किया; किन्तु उर्दू में कहानी लिखना उन्होंने 1901 से ही शुरू कर दिया था। उर्दू में वह नवाब राय नाम से लिखा करते थे और 1910 में उनकी उर्दू में लिखी कहानियों का पहला संकलन सोज़े वतन प्रकाशित हुआ। इस संकलन के ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिए जाने पर उन्होंने नवाब राय छोड़कर प्रेमचन्द नाम से लिखना शुरू किया। ‘प्रेमचन्द’ - यह प्यारा नाम उन्हें एक उर्दू लेखक और सम्पादक दयानारायन निगम ने दिया था। जलियाँवाला बाग हत्याकांड और असहयोग आन्दोलन के छिड़ने पर प्रेमचन्द ने अपनी बीस साल की नौकरी पर लात मार दी। 1930 के अवज्ञा-आन्दोलन के शुरू होते-होते उन्होंने ‘हंस’ का प्रकाशन भी आरम्भ कर दिया। प्रेमचन्द को कथा-सम्राट बनाने में जहाँ उनकी सैकड़ों कहानियों का योगदान है, वहाँ गोदान, सेवासदन, प्रेमाश्रम, गबन, रंगभूमि, निर्मला आदि उपन्यास आनेवाले समय में भी उनके नाम को अमर बनाए रखेंगे।

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