राम की शक्ति पूजा (Hindi Poetry): Ram Ki Shakti Pooja(hindi poetry)

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सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रमुख स्तम्भ हैं। राम की शक्ति पूजा उनकी प्रमुख काव्य कृति है। निराला ने राम की शक्ति पूजा में पौराणिक कथानक लिखा है, परन्तु उसके माध्यम से अपने समकालीन समाज की संघर्ष की कहानी कही है। राम की शक्ति पूजा में एक ऐसे प्रसंग को अंकित किया गया है, जिसमें राम को अवतार न मानकर एक वीर पुरुष के रूप में देखा गया है, दो रावम जैसे लम्पट, अधर्मी और अनंत शक्ति सम्पन्न राक्षसराज पर विजय पाने में तब तक समर्थ नहीं होते जब तक वे शक्ति की आराधना नहीं करते हैं

 

Common terms and phrases

अंगद अन्धकार अपार अिधक और अिपर्त आज आज्ञा आया आये इन्दीवर इस उद्यत हो उपवन में उसे एक ओर और कमल करता करते करने को का काव्य किप की शिक्त पूजा के के दृग केवल को क्षण भर जप जपते जब जहाँ जानकी जाम्बवान जीवन जैसे जो ज्यों तक तन तुम दुगार् दूर दृिष्ट देखते देखा दो ध्यान नभ नयन नहीं नील ने पर पर्ाणों पा पार पीछे बँध बर्ह्माण्ड बैठे बोले भी भूधर मन महावीर माता मुझे में मैं मौन यह युग ये रघुनन्दन रण रहे राम की शिक्त रावण रावण का लक्ष्मण लख लम्पट लीन ले वह वहाँ वही वानर वे श◌्यामा शि◌व सकल सत्य सब समय समर समस्त सीता सुगर्ीव सूयर्कान्त ितर्पाठी िनराला से स्थान स्वर हनूमान हस्त हार ही हुआ हुई हुए है हैं हो गये हो रहा होते होने लगा िकया िदवस िनज िनश◌्चय िपर्य िफर िलए िलये िवचार िवजय िवभीषण िवषम िस्थर िहन्दी

About the author (2014)

 सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हिन्दी कविता के छायावादी युग के प्रमुख कवियों में से थे। हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों मे से एक सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म सन् 1896 ई० में हुआ था। निश्चित तिथि के अभाव में इनका जन्मदिवस माघ मास में वसन्त पंचमी के दिन मनाया जाता है। 11 जनवरी 1921 ई० को पं० महावीर प्रसाद को लिखे अपने पत्र में निराला जी ने अपनी उम्र 22 वर्ष बताई है।

महिषादल के विद्यालय में प्रवेश पंजिका के अनुसार 13 सितम्बर 1907 ई० को आठवें दर्जे में भर्ती हुए। तब उनकी उम्र लिखाई गई 10 साल 8 महीने। यदि पंजी में दर्ज की गई उम्र को सही मानी जाए तो निराला जी का जन्म वर्ष होगा 1897 ई०। निराला जी का जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए।

जन्म: २१ फरवरी १८९६ को पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक देशी राज्य में. मूल निवास: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव. शिक्षा: हाई स्कूल तक हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्यन। कार्यक्षेत्र: 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य की सेवा। उसके बाद संपादन स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य । 1922 से 23 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित 'समन्वय' का संपादन। 1923 के अगस्त से 'मतवाला' के संपादक मंडल में । इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय और वहाँ से निकलने वाली मासिक पत्रिका 'सुधा' से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे। 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य ।

15 अक्तूबर 1961 को इलाहाबाद में उनका निधन हुआ।

प्रमुख कृतियाँ:

काव्यसंग्रह: परिमल, गीतिका, द्वितीय अनामिका, गोस्वामी तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, अर्चना, आराधना, गीत कुंज, सांध्य काकली, राम की शक्ति पूजा।

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