Pṛthvīrāja rāsō. Sampādaka: Kavirāva Mōhanasiṃha. [Prathama samskaraṇa], Volume 3Sāhitya Saṃstthāna, 1954 |
From inside the book
Results 1-3 of 78
Page 36
... उसके पास प्रबल सेना थी , फिर भी उसकी धृष्टता इतनी अधिक बढ़ गई थी कि पृथ्वीराज से अनेकों बार हार जाने और आता था । पृथ्वीराज को सबसे ...
... उसके पास प्रबल सेना थी , फिर भी उसकी धृष्टता इतनी अधिक बढ़ गई थी कि पृथ्वीराज से अनेकों बार हार जाने और आता था । पृथ्वीराज को सबसे ...
Page 38
... उसकी सीमा कोई दबा नहीं सकता था । उसकी कीर्ति श्र ेष्ट और रीति अचल थी । उसके मनमें संभरी नरेश सोमेश्वर चुभता था । उसके हृदय में क्रोध ...
... उसकी सीमा कोई दबा नहीं सकता था । उसकी कीर्ति श्र ेष्ट और रीति अचल थी । उसके मनमें संभरी नरेश सोमेश्वर चुभता था । उसके हृदय में क्रोध ...
Page 514
... उसके भौंह- भ्रमर पंख फैला कर उड़ने लगे ( कटाक्ष करने लगे ) । उसके अङ्ग की शांति प्रद मंद सुरभित हवा ने मन- भावन - पति को चकित कर दिया । उसकी ...
... उसके भौंह- भ्रमर पंख फैला कर उड़ने लगे ( कटाक्ष करने लगे ) । उसके अङ्ग की शांति प्रद मंद सुरभित हवा ने मन- भावन - पति को चकित कर दिया । उसकी ...
Common terms and phrases
अपनी अपने अर्थ अर्थः इन्द्र इस प्रकार उस उस समय उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक और कर करके करता करते करना करने करि कवि कवित्त कहा का का० काम कामदेव कारण कि किया की के लिए के लिये के समान को कोई गई गया गये घर चंद चहुआन जल जाने जो तथा तब तुल्य तो था थी थे दल दिन दिया दिल्ली देव दोनों दोहा द्वारा नहीं ने पज्जून पति पर पुत्र पृथ्वी पृथ्वीराज के प्रा० पा० १ प्राप्त बर बल बात बीर भर भी भीं० भीम मन में यह या युद्ध में रस राज राजस्थान राजा रावल रूप लगा लगी लगे लिया वर वह वाला वाले विशेष वीर वीरों वे शत्रु शत्रुओं शब्दार्थ शरीर शाह शिव श्र श्रेष्ठ संयोगिता सब सम समर सहित सामंत सामंतों सिर सु सूर सूर्य से सेना स्थान हाथ हाथी ही हुआ हुई हुए हे है हैं हो होकर होने