Dādū kāvya kī sāmājika prāsaṅgikatā |
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अतः अधिक अनेक अन्य अपनी अपने आज आदि आधार इस इस प्रकार इसी ईश्वर उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसके उसे एक एवं कबीर कर करता है करते हैं करना करने करि कहते कहा है का काया कारण काव्य किया है किसी की कुछ के रूप में के लिए को कोई गया है चाहिए जब जाता है जाति जीव जीवन जो तक तथा तो था थी थे दादू ने दादूदयाल दिया द्वारा धर्म नहीं है नाम पंथ पर परन्तु परमात्मा परशुराम परिवार पृ० बहुत बात ब्रह्म भारत भाव भी मन मनुष्य महाभारत मानव माना माया मुसलमान में भी मैं यदि यह यही या राम वह वही वाणी विचार वे व्यक्ति संसार सकता है सन्त सन्तों सब सभी समय समाज समाज के समाज में सम्बन्ध सम्बन्धों साथ सामाजिक सामाजिक प्रासंगिकता साहित्य से स्वयं हिन्दी साहित्य हिन्दू ही हुआ है और है कि हो होता है होते होने