Hindī muhāvare |
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अज्ञेय अपना अपनी अपने अब आंख आंखें आंखों आग आज आना आप इस उसे एक एवं और कबीर कर करना करने कलेजा का कान काम किया किसी की कुछ के के लिए को कोई कौशिक क्या क्यों खाना गई गबन गया गये गला गले गु० गोदान ग्रंथा० घर चलना चुभते० छाती जब जाता जान जाना जी जो डालना तक तब तरह तुम तुलसी तो था थी थे दास दिन दिया दिल दे० देखना देना नहीं ना० निराला ने पड़ना पद्म० पर पानी पैर प्रयोग प्रेमचंद प्रेमचन्द फिर बहुत बात बातें बोल० भर भा० भारतेन्दु भी मन मान० मारना मुंह में मेरी मैं यह या रंग० रखना रहना रहा रही रहे राधा० राम० लगना लगाना लेना लोग वर्मा वह वे शर्मा स० सब समा० मुहा० सिर सू० सा० सूर से हम हरिऔध हरिप्रौध हाथ ही हुआ हुई हुए हृदय है है कि हैं हो जाना होना होनी