खाँटी किकटिया (Khanti Kikatia): आजीवक मक्खलि गोसाल के जीवन-दरसन पर आसरित उपन्यास

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Pyara Kerketta Foundation, Jan 31, 2018 - Magahi fiction - 224 pages
इस मगही उपन्यास में 600 ईसा पूर्व समाज के सांस्कृतिक और राजनीतिक द्वंद्व का चित्रण है. जब महावीर और बुद्ध सहित अनेक दार्शनिक पुरानी और नयी व्यवस्थाओं के बीच अपना पक्ष चुन रहे थे. ‘खाँटी किकटिया’ उसी संक्रमणकालीन दौर के वैचारिक संघर्ष को उद्घाटित करता है जिसके बारे में भारतीय इतिहास और साहित्य हमें कोई विशेष जानकारी नहीं देता.
 

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अइसन अउ अखनी अगुआन अपन अपने अब अवाज आउ आगू इया इहे ई बात उनखर उनखा एक एकरा एगो एहे ओकर ओकरा ओला ओहनी के कइसे कय कर करइत करऽ करे कह कहलखिन कहलथी का काहे कि किरिया कुच्छ कूनिक के बात केकरो कोय खाली गांव गेलइ गेलइ हल गेलथी गो घर चल जइसन जनाना जब जा जादे जाय जे तक तऽ तू दन्ने दिन दू दून्नो देह दोसर नय नयं नयं हलइ नऽ नियर पर पहिले पुरखा फिन बकि बड़ बरधमान के बरिस बात बाद बिचार बिहार बेबस्था बेर बेरा बेस बैसाली भण्डरिया भम्भसार भिरु भी मक्खलि के मग्गह के मति मनुख के में रहऽ लगल लेल लोग लोग के श्रमण श्रेणिक संघ सब सब के सबके सबसे समाज सुन से हइ हथ हथी हमरा हम्म हम्मनी हम्मर हल हलइ हलइ कि हलथी हऽ हाथ हियइ ही हे हे कि हो गेल होवऽ हइ

About the author (2018)

अश्विनी कुमार पंकज का जन्म 1964 में हुआ। रांची विश्वविद्यालय, रांची से कला स्नातकोतर। अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों-रंगकर्म, कविता-कहानी, आलोचना, पत्रकारिता एवं डॉक्यूमेंट्री में समान रूप से सृजन। झारखंड आंदोलन में सघन संस्कृतिकर्म। आदिवासी विषय इनके सृजनकर्म के केंद्र में है। कई नाटकों का मंचन, पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन और दो दर्जन से ज्यादा डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण। अब तक कहानी के 4, कविता की 6, नाटकों के 2, राजनीति पर एक, जयपाल सिंह मुंडा पर 3 और हिंदी में एक उपन्यास ‘माटी माटी अरकाटी’ प्रकाशित। यह उपन्यास 19वीं सदी की शुरुआत में झारखंड से मॉरिशस, फिजी आदि द्वीपों पर ले जाए गए आदिवासी गिरमिटियों पर केंद्रित है जिसमें मगही, भोजपुरी और नागपुरी भाषाओं का अद्भुत सृजनात्मक उपयोग हुआ है। नब्बे के शुरुआती दशक में जन संस्कृति मंच एवं उलगुलान संगीत नाट्य दल, रांची के संस्थापक संगठक सदस्य। फिलहाल लोकप्रिय मासिक नागपुरी पत्रिका ‘जोहार सहिया’, पाक्षिक बहुभाषी अखबार ‘जोहार दिसुम खबर’ और रंगमंच एवं प्रदर्श्यकारी कलाओं की त्रैमासिकी ‘रंगवार्ता’ का संपादन-प्रकाशन।

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