Bhartiya Bhashaon Mein Ramkatha(Bangla bhasha)

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Yogendra Pratāpa Siṃha, Hariścandra Miśra
Vani Prakashan, 2015 - Bengali poetry - 135 pages
भारतीय संस्कृति के विभाजन को केन्द्र में रखते हुए भारतीय भाषाओं एवं राज्यों को पृथक्-पृथक् खंडों में बाँटने वाले विदेशी राजतन्त्रों के कारण भारत बराबर टूटते हुए भी, अपने सांस्कृतिक सन्दर्भों के कारण, अब भी एक सूत्रा में बँधा है। एकता के सूत्र में बाँधने वाले सन्दर्भों में राम, कृष्ण, शिव आदि के सन्दर्भ अक्षय हैं। भारतीय संस्कृति अपने आदिकाल से ही राममयी लोकमयता की पारस्परिक उदारता से जुड़ी सम्पूर्ण देश, उसके विविध प्रदेशों एवं उनकी लोक व्यवहार की भाषाओं में लोकाचरण एवं सम्बद्ध क्रियाकलापों से अनिवार्यतः हजारों-हजारों वर्षों से एकमेव रही है। बंगाल में रामकथा ‘लोक साहित्य’ पुस्तक के ‘ग्राम्य साहित्य’ प्रकरण में रवीन्द्रनाथ अपनी बात प्रस्तुत करते हैंµ”बंगला ग्राम्य गान में हर-गौरी एवं राधा-कृष्ण की कथा के अलावा सीता-राम एवं राम-रावण की कथा भी पायी जाती है किन्तु तुलना की दृष्टि से अल्प है।...बंगाल की मिट्टी में उस रामायण की कथा हर-गौरी और राधा-कृष्ण की कथा के ऊपर सिर नहीं उठा पायी, वह हमारे प्रदेश का दुर्भाग्य है। जिसने राम को युद्ध-क्षेत्र में एवं कर्म-क्षेत्र में देवता का आदर्श माना है, उसके पौरुष, कर्तव्यनिष्ठा एवं धर्मपरकता का आदर्श हमारी अपेक्षा उच्चतर है’
 

Contents

Section 1
3
Section 2
5
Section 3
9
Section 4
11
Section 5
19
Section 6
36
Section 7
53
Section 8
64
Section 9
73
Section 10
83
Section 11
88
Section 12
97
Section 13
104
Section 14
113
Section 15
126

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Common terms and phrases

अपनी अपने अयोध्या आदर्श आधार इस इसमें इसी उनका उनकी उनके उन्होंने उस उसके उसी एक एवं ओर और कर करते हैं करने कवि कहते कहा का कारण काव्य किन्तु किया है किसी की की कथा की रचना कुछ कृतिवास की के प्रति के बाद के लिए के साथ कैकेयी को कोई गया है जा जाता है जिस जीवन जो तक तथा तब तरह ताराशंकर तुलसी तुलसीदास तो था थी थे दशरथ दिया दोनों धर्म नहीं नहीं है नाटक ने पर पुराण पृ प्रकार बंगाल बांग्ला बात बाल्मीकि रामायण भरत भारत भारतीय भी मन मनुष्य महाभारत में मैं यह यहाँ या युद्ध रवीन्द्रनाथ रहा राजा राम राम के रामकथा रामचन्द्र रामचरितमानस रामायण के रामायण में रावण रूप से लक्ष्मण लेकर वह वाल्मीकि रामायण विभीषण वे श्री संस्कृति समय समाज साहित्य सीता के से हनुमान ही हुआ है हुई हुए है और है कि हो होकर होता है होती होने

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