Jainavidyā evaṃ Prākr̥ta

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Sampūrṇānanda Saṃskr̥ta Viśvavidyālaya, 1987 - Jainism - 345 pages
On Jaina studies and Prakrit; papers presented at seminars held in 1981 and 1987.

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Contents

१२ Jaina Contribution to Indian Society
92
The sociological and historical background of literary
99
१५ अपराजित पृच्छा में चित्रित सामाजिक दशा
124
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अध्ययन अनेक अन्य अपने अपभ्रंश अर्थ आगरा आदि आधार इतिहास इन इस इस प्रकार इसी उत्तर प्रदेश उनके उल्लेख उसके एक एवं ओर और कर करते करना करने कहा का काल किया किया गया किया है किसी की कुछ के अनुसार के कारण के रूप में के लिए के साथ को गया है गुजरात जा सकता जाता है जिन जीवन जैन जैनधर्म जैसे जो डा० डॉ तक तथा तो था थी थे दृष्टि से दो दोनों द्वारा धर्म नहीं है नाम ने पटना पर परम्परा पृ पृ० प्रथम प्रयोग प्राकृत प्राचीन प्राप्त बनारसीदास बिहार भाग भारत भारतीय भाषा भाषाओं भी मथुरा महावीर मूर्तियाँ में में भी यह या ये राजस्थान वह वही वाराणसी विकास विभाग विभिन्न विश्वविद्यालय वे वैदिक शब्द शरीर संस्कृत सकता है समय साहित्य से हिन्दी ही हुआ है हुई हुए है और है कि हैं हो होता है होती होते होने Jaina

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