"Mailā ān̐cala" kī racanā-prakriyāVāṇī Prakāśana, 1987 - 131 pages Study of Mailā āńcala, a novel, by Phanị̄svaranātha Renụ. |
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अंचल अधिक अनेक अपनी अपने अब अभिव्यक्ति आंचलिक उपन्यास आंचलिकता इन इस इसमें इसी उनकी उनके उपन्यासों उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ओर कथा कर करता है करते करना करने का कारण कालीचरन किया है किसी की कुछ कृति के प्रति के लिए के साथ को कोई गई है गया है गाँव गाँव में चरित्र चेतना जब जा जाता है जाती जी जीवन के जो तक तथा तो था थी दिया देश द्वारा नहीं नहीं है नागार्जुन ने पर परिवेश पृ० प्रकार प्रस्तुत फिर बड़ी बहुत बात बाद बालदेव भाषा भी मठ मन महंथ में में भी मेरीगंज मैला आँचल यह यहाँ ये रहा है रही रहे रेणु लक्ष्मी लगता है लेकर लेकिन लेखक ने लोक लोग लोगों वह वहाँ वही वाले विकास विशिष्ट विशेष वे व्यक्ति सकता सामान्य से हम हिन्दी ही हुआ है हुई हुए है और है कि हैं होता है होती होते होने