Pṛthvīrāja rāsō. Sampādaka: Kavirāva Mōhanasiṃha. [Prathama samskaraṇa], Volume 4Sāhitya Saṃstthāna, 1954 |
From inside the book
Results 1-3 of 78
Page 477
... और प्रकाशन कार्य के लिये " प्राचीन साहित्य खोज विभाग " की स्थापना की गई थी । तब से आज तक इसके नाम में कार्य और प्रवृत्तियों के विकास ...
... और प्रकाशन कार्य के लिये " प्राचीन साहित्य खोज विभाग " की स्थापना की गई थी । तब से आज तक इसके नाम में कार्य और प्रवृत्तियों के विकास ...
Page 489
... और राजप्रासाद के ऐश्वर्य का वर्णन करते हुए जयचन्द और चन्द के वार्तालाप वाले प्रसंग पर आता है यहां कविवर की निर्भीकता इस बात में ...
... और राजप्रासाद के ऐश्वर्य का वर्णन करते हुए जयचन्द और चन्द के वार्तालाप वाले प्रसंग पर आता है यहां कविवर की निर्भीकता इस बात में ...
Page 514
... और भी सहायक हो रहे थे । रासो में राष्ट्र की इसी दयनीय राजनीति- जीवन की स्पष्ट झाँकी मिलती है । इसमें अजमेर और दिल्ली के अन्तिम परम ...
... और भी सहायक हो रहे थे । रासो में राष्ट्र की इसी दयनीय राजनीति- जीवन की स्पष्ट झाँकी मिलती है । इसमें अजमेर और दिल्ली के अन्तिम परम ...
Common terms and phrases
अपनी अपने अर्थ अर्थः आप इस इस प्रकार उस उस समय उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक ऐसा और कन्नौज कर करके करता करना करने करि कवि कवित्त कहने कहा का कारण किन्तु किया की की ओर के लिए के लिये के समान के साथ को गई गये घर चंद जाने जिससे जो तक तथा तब तुम तुल्य तो था थी थे दल दिन दिया दिल्ली देख देव दोनों दोहा द्वारा धीर नहीं ने पंगुराज पति पर पा० पुण्डीर पुत्र पृथ्वी पृथ्वीराज के प्राप्त बर बात भर भी मन मुख में मैं यह या युद्ध में रस रहा राज राजस्थान राजा के रूप लगा लगी लगे लिया वर वह वाला वाले वीर वीरों वे शत्रु शब्दार्थ शरीर शाह शिव संयोगिता सब समर सामंत सिर सु सूर्य से सेना स्थान स्वामी हाथ हाथी ही हुआ हुई हुए हे है है कि हैं हो गया होकर होता होने