Pṛthvīrāja rāsō. Sampādaka: Kavirāva Mōhanasiṃha. [Prathama samskaraṇa], Volume 4 |
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Page 515
वीरता का गौरव ग्वामि-धर्म का पालन करने हेतु युद्ध करते हुए
वीर गति पाकर कीर्ति प्राप्त करने में था, क्योंकि मृत्यु उस
समय भय की वस्तु नहीं समझी जाती थी । युद्ध में विजय प्राम
करने ...
वीरता का गौरव ग्वामि-धर्म का पालन करने हेतु युद्ध करते हुए
वीर गति पाकर कीर्ति प्राप्त करने में था, क्योंकि मृत्यु उस
समय भय की वस्तु नहीं समझी जाती थी । युद्ध में विजय प्राम
करने ...
Page 622
अर्थ:—तब राजा स्तुति करने लगा, गंगाजल और विभूति युक्त
आपका शरीर सुन्दर वर्ण से शोभित है, वह अनेक वर्णों के मन को
हरने वाला और देखते ही गिरिजा के मन को रंजन करने वाला है।
श्राप गज ...
अर्थ:—तब राजा स्तुति करने लगा, गंगाजल और विभूति युक्त
आपका शरीर सुन्दर वर्ण से शोभित है, वह अनेक वर्णों के मन को
हरने वाला और देखते ही गिरिजा के मन को रंजन करने वाला है।
श्राप गज ...
Page 710
शब्दार्थ:—अनुसरिग-अनुसरण करने लगे । अंगदह=श्रंगद तुल्य ।
धानुक धर=धनुर्धारी । हैंक्= घोड़े । चवसट्टि=चौंसठही
योगिनियां । गरुश्र गाजंत=गहरी गर्जना । महा=विशेष संख्या
में । उलटंत ...
शब्दार्थ:—अनुसरिग-अनुसरण करने लगे । अंगदह=श्रंगद तुल्य ।
धानुक धर=धनुर्धारी । हैंक्= घोड़े । चवसट्टि=चौंसठही
योगिनियां । गरुश्र गाजंत=गहरी गर्जना । महा=विशेष संख्या
में । उलटंत ...
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Common terms and phrases
अपनी अपने इस इस प्रकार उस उस समय उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक ऐसा और कन्नौज करके करता करते हुए करना करने करि कवि कवित्त कहने कहा का कारण किन्तु किया की के लिए के लिये के समान के साथ को कोई गई गये घोड़े चंद जाने जिससे जो तक तथा तब तुम तुल्य तो था थी थे दल दिन दिया दिल्ली दी देख देखकर देने दोनों दोहा द्वारा धर धीर नहीं ने पंगुराज पति पर पा० पुण्डीर पुत्र पृथ्वी पृथ्वीराज के बर बल बात भर भी मन मुख में मैं यह या युद्ध में रस रहा राज राजस्थान राजा के रूप लगा लगी लगे लिया वर वह वाला वाले वीर वीरों वे शत्रुओं शरीर शाह शिव श्रेष्ठ संयोगिता सब सामंत सिर सु सूर्य से सेना स्थान स्वामी हाथ हाथी ही हुआ हुई हुए हुश्रा हे है है कि हैं हो गया होकर होता होने