Katha Satisar

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Rajkamal Prakashan, Jan 1, 2007 - Hindi fiction - 594 pages
शैव, बौद्ध और इस्लाम की साँझी विरासतों से रची कश्मीर वादी में पहले भी कई कठिन दौर आ चुके हैं । कभी औरंगजेब के समय, तो कभी अफगान-काल में । लेकिन वे दौर आकर गुजर गए । कभी धर्म की रक्षा के लिए, गुरु तेगबहादुर मसीहा बनकर आए, कभी कोई और । तभी ललद्यद और नुन्दऋषि की धरती पर लोग, भिन्न धर्मों के बावजूद, आपसी सौहार्द और समन्वय की लोक-संस्कृति में रचे-बसे जीते रहे! आज वही आतंक, हत्या और निष्कासन का कठिन सिकन्दरी दौर फिर आ गया है, तब सिकंदर के आतंक से वादी में पंडितों के कुल ग्यारह घर बचे रह गए थे । गो कि नई शक्ल में नए कारणों के साथ, पर व्यथा-कथा वही है-मानवीय यन्त्रणा और त्रास की चिरन्तन दुख-गाथा! लोकतन्त्र के इस गरिमामय समय में, स्वर्ग को नरक बनाने के लिए कौन जिम्मेदार हैं? छोटे-बड़े नेताओं, शासकों, बिचौलियों की कौन-सी महत्त्वाकांक्षाओं, कैसी भूलों, असावधानियों और ढुलमुल नीतियों का परिणाम है-आज का रक्त-रँगा कश्मीर? पाकिस्तान तो आतंकवाद के लिए जिम्मेदार है ही, पर हमारे नेतागण समय रहते चेत क्यों न गए? ऐसा क्यों हुआ कि जो औसत कश्मीरी, गुस्से में, ज्यादा-से-ज्यादा, एक-दूसरे पर काँगड़ी उछाल देता था, वही कलिशनिकोव और एके, सैंतालीसों से अपने ही हमवतनों के खून से हाथ रँगने लगा? ऐलान गली जिन्दा है तथा यहाँ वितस्ता बहती है के बाद कश्मीर की पृष्ठभूमि पर लिखा गया चर्चित लेखिका चन्द्रकान्ता का बृहद् उपन्यास है-कथा सतीसर लेखिका ने अपने इस नवीनतम उपन्यास में पात्रों के माध्यम से मानवीय अधिकार और अस्मिता से जुड़े प्रश्नों को उठाया है । इस पुस्तक में सन् 1931 से लेकर 2000 के शुरुआती समय के बीच बनते-बिगड़ते कश्मीर की कथा को संवेदना का ऐसा पुट दिया गया है कि सारे पात्र सजीव हो उठते हैं । सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में घटे हादसों से जनजीवन के आपसी रिश्तों पर पड़े प्रभावों का संवेदनात्मक परीक्षण ही नहीं है यह पुस्तक, वर्तमान के जवाबदेह तथ्यों को साहित्य में दर्ज करने से एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी बन गई है ।
 

Selected pages

Contents

Section 1
3
Section 2
7
Section 3
9
Section 4
11
Section 5
29
Section 6
31
Section 7
33
Section 8
71
Section 18
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Section 19
275
Section 20
276
Section 21
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Section 22
320
Section 23
350
Section 24
378
Section 25
399

Section 9
84
Section 10
92
Section 11
110
Section 12
135
Section 13
159
Section 14
185
Section 15
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Section 16
259
Section 17
273
Section 26
413
Section 27
535
Section 28
541
Section 29
542
Section 30
543
Section 31
545
Section 32
571
Section 33
600
Section 34
644

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Common terms and phrases

अधिक अनेक अपनी अपने अपभ्रंश आदि इन इनकी इस प्रकार इसका इसके इसमें इसी उनका उनकी उनके उन्होंने उस एक ओर कई कबीर कर करके करता करते करने कवि कविता कवियों कहते हैं कहा का कारण काल काव्य किया है किसी की कुछ के लिए के साथ केवल को कोई गया है गयी गये ग्रन्थ ग्रन्थों जब जा जाता है जाती जिस जो तक तुलसीदास तो था थी थीं थे दिया देश दो दोनों धर्म नहीं है नाम नामक ने पर परन्तु परम्परा पहले पुस्तक प्रकार की प्रसिद्ध प्राप्त प्रेम फिर बहुत बात बौद्ध भक्त भक्ति भगवान् भारतीय भाव मत में भी यह या ये रचना रचनाओं रहा रहे रूप में रूप से लिखा लिखी लिखे वर्णन वह विषय वे शताब्दी के संस्कृत सन् सभी समय सम्प्रदाय साहित्य साहित्य में से हिन्दी ही हुआ हुआ है हुई हुए है और है कि हो होता है होती होते होने

About the author (2007)

जन्म: 3 सितम्बर, 1938 में (प्रोफेसर रामचन्द्र पंडित की पुत्री; पति डॉ. एम.एल. बिशिन) श्रीनगर (कश्मीर)

शिक्षा: एम.ए., बी.एड.; बी.ए. (गर्ल्स कॉलेज) एवं हिन्दी प्रभाकर (ओरियंटल कॉलेज); बी.एड. (गांधी मेमोरियल कॉलेज), श्रीनगर, कश्मीर; बी.एड. में जम्मू-कश्मीर यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान और एम.ए. (हिन्दी), बिड़ला आर्ट्स कॉलेज, पिलानी, राजस्थान यूनिवर्सिटी; एम.ए. (हिन्दी), बिड़ला आर्ट्स कॉलेज में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।

प्रकाशित रचनाएँ: कहानी-संग्रह - सलाख़ों के पीछे: 1975; ग़लत लोगों के बीच: 1984; पोशनूल की वापसी: 1988; दहलीज़ पर न्याय: 1989; ओ सोनकिसरी!: 1991; कोठे पर कागा: 1993; सूरज उगने तक: 1994; काली बर्फ: 1996;  प्रेम कहानियाँ: 1996; चर्चित कहानियाँ: 1997; कथा नगर: 2001; बदलते हालात में:  2002; आंचलिक कहानियाँ: 2004; अब्बू ने कहा था: 2005; तैंती बाई: 2006;  कथा संग्रह (‘वितस्ता दा जहर’ शीर्षक से पंजाबी भाषा में अनूदित; अनुवादकः श्री हर्षकुमार हर्ष): 2007; रात में सागर 2008। उपन्यास - बाक़ी सब ख़ैरियत है (उड़िया भाषा में अनूदित; अनुवादक: प्रवासिनी तिवारी): 1983; ऐलान गली ज़िन्दा है (अंग्रेजी भाषा में अनूदित; अनुवादक: मनीषा चौधरी): 1984; अपने-अपने कोणार्क: 1995; कथा सतीसर: 2001; अन्तिम साक्ष्य और अर्थान्तर (उड़िया भाषा में अनूदित; अनुवादक: श्रीनिवास उद्गाता): 2006;  यहाँ वितस्ता बहती है: 2008। अन्य कृतियाँ - यहीं कहीं आसपास: 1999 (कविता संग्रह); मेरे भोजपत्र: 2008 (संस्मरण एवं आलेख)।

सम्मान: जम्मू-कश्मीर कल्याण अकादमी; हरियाणा साहित्य अकादमी; मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार; हिन्दी अकादमी, दिल्ली; व्यास सम्मान (के.के. बिड़ला फाउंडेशन दिल्ली), चन्द्रावती शुक्ल सम्मान; कल्पना चावला सम्मान; ऋचा लेखिका रत्न; वाग्मणि सम्मान; राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान; ऑल इंडिया कश्मीरी समाज द्वारा कम्यूनिटी आइकॉन एवार्ड, आदि।

 

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