पारो उत्तरकथा - एक सिंहावलोकन Paro Uttarkatha - Ek Sinhavlokan

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पुरोवाक्

प्रत्येक रचना धर्मिता का अपना एक लक्ष्य होता है। यह पुस्तक भी एक उद्देश्य लेकर चली है और उस तक पहुँचने के लिए थोड़ा पीछे चलकर विचार करना होगा, तो तथ्यों तक पहुँचने में सुविधा होगी।

प्रसिद्ध बंगला उपन्यासकार शरतचन्द्र ने आधीसदी पूर्व एक उपन्यास ‘‘देवदास’’ लिखा था और उसमें व्यक्ति और प्रेम के अन्तर्सम्बन्धों को नये परिप्रेक्ष्य में देखा गया है। रचना के पात्र ‘देवदास’ और ‘पार्वती’ के प्रेमिक आयामों की सफलता या असफलता के बीच प्रेम की शाश्वता को मानव जीवन में स्थान दिया गया है। सांसारिक सम्बन्धों के तेवर भले ही बदले हों परन्तु वह प्रेम की आँच कभी धीमी नहीं पड़ी जो जिन्दगी को डोर बन गई साहित्य जगत में इस रचना का समादर हुआ।

कालान्तर में इसी उपन्यास की मूल कथा में आंशिक परिस्थितिजन्य परिवर्तन करके ‘देवदास’ फिल्म बनी और सफल रही। इसके कुछ ही समय बाद ‘‘देवदास’’ नाम से दूसरी फिल्म भी बनी। इनसे साहित्य और समाज तथा चलचित्रों की दुनिया ने प्रेम के मूल तत्व को पहिचानने की कोशिश की। परन्तु ‘देवदास’ और ‘पार्वती’ के प्रेम की पवित्रता और कर्तव्यनिष्ठा के द्वंन्द में डूबा भारतीय साहित्य का जनमानस उद्देलित ही होता रहा, परिणामतः इसी ‘देवदास’ के कथानक पर आधारित एक रचना आयी इसे पूर्व नाम की जगह ‘पारो’ नाम दिया गया। लेखक सुदर्शन प्रियदर्शनी ने इसे एक नई दृष्टि से देखा। ‘पारो’ में शरत की मूल कथा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया गया। ‘देवदास’, ‘पारो’ और ‘चन्द्रमुखी’ के चिन्तन, लोकव्यवहार, पारिवारिक सम्बन्धों के निर्वाह के बीच प्रेम की शाश्वतताः को कायम रखा गया, किन्तु ‘पारो’ में ‘पारो’ और उसका पति दोनों अपनी-अपनी जगह खुद से पराजित दिखे। इसे मानवीय अन्तर्मन की विडम्बना ही कहा जा सकता है।

इस पुस्तक में ‘पारो’ उपन्यास पर केन्द्रित समीक्षा-निबन्धों को एक स्थान पर संग्रहीत किया गया है। इससे ‘पारो’ को समझने में निम्नबिन्दु उभरकर आये -

1. कुछ समीक्षकों ने ‘पारो’ के ‘देवदास’ के प्रति प्रेम को उचित और शाश्वत माना।

2. कुछ विद्वानों ने ‘देवदास’ की प्रेम के प्रति धारणा को लौकिक जीवन के तारतम्य में एक व्यवहारिक रूप में देखा। जो सामाजिक जीवन में नितान्त जरूरी है।

3. पारिवारिक जीवन के बीच दाम्पत्य का ध्रवीकरण करने की आवश्यकता पर भी कुछ विद्वानों का ध्यान गया है।

4. स्त्री अस्मिता के पक्ष में कुछ समीक्षकों ने अपना मत प्रस्तुत किया जो आज के समय की माँग है।

5. कृतिकार अपनी स्थानाओं एवं चरित्र विकास में पात्रों के आग्रह-पूर्वाग्रहों से कितना प्रभावित रहा इसे महत्व दिया। साथ ही कुछ स्थानों पर साहित्यिक समीक्षा बोधा के कारण समीक्षकों ने कहीं सहमति जताई तो कहीं नकार दिया। जो कृति और उसके महत्व को प्रदर्शित करता है।

6. उपन्यासकार की स्थापनाएँ या फिर पात्रों के अपने-अपने नैतिक आदर्श, या फिर सामाजिकता के सम्बन्धों का निर्वाह, या फिर मानवीय अन्तर्मन की हिलारों से प्रभावित होकर सर्वमान्य बन सका।

इस आलोचकीय संग्रह का लक्ष्य लेखकीय रचनात्मकता और किसी भी उधेड़बुन से दूर मर्म स्थलीय केन्द्रीयता की तलाश है। इस संपादन से ‘पारो’ के प्रति विद्वानों का समवेत स्वर सामने आकर नारी जाति की संवेदना के पक्ष को मजबूत करेगा।

अवधबिहारी पाठक

सेंवढ़ा, जिला दतिया (म.प्र.)

मो. 9826546665


 

Contents

Section 1
6
Section 2
14
Section 3
40
Section 4
103
Section 5
106
Section 6
108
Section 7
110

Common terms and phrases

अपना अपनी अपने आज आत्मा इस उत्तरकथा उनकी उपन्यास उपन्यास में उस उसका उसकी उसके उसे एक और पारो कंचन कभी कर करता है करती करने कहानी कहीं का कारण किया किसी की कुछ के प्रति के बाद के लिए के साथ को कोई क्या गई गया है घर चन्द्रमुखी जब जाता है जाती जाते हैं जाने जी जो तक तरह तो था थी दिया देता देती है देव के देवदास के दोनों नहीं नारी ने पति पत्नी पर परिवार पात्र पारो के पार्वती पुरुष प्यार प्रेम प्रेम की फिर फिल्म बन बहुत बात भी मन माँ में मैं यह यहाँ यही या रहा रही है राधा राय रायसाहब रूप लगता है लेकिन लेखक लेखिका वह वाले विवाह वीरेन वो सकता है सब समय समाज सुदर्शन से सोच स्त्री स्वयं हम हर ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि हैं हो जाता होता है होती होने

About the author (2023)

सुदर्शन प्रियदर्शिनी


जन्म : लाहौर, अविभाजित भारत

बचपन : शिमला

उच्च शिक्षा : चंडीगढ़

सम्प्रति : अमेरिका में 1982 से

महादेवी पुरूस्कार : हिंदी परिषद कनाडा

महानता पुरूस्कार : फेडरेशन ऑफ इंडिया ओहियो

गवर्नस मीडिया पुरुस्कार :


भारत में 17 साल तक अध्यापन (कालिज) में

यहाँ चार साल तक अध्यापन ( कालिज में)

शोध प्रबंध - आत्मकथात्मक शैली के हिंदी उपन्यासों का अध्ययन

हरियाणा कहानी पुरूस्कार 2016

हिंदी चेतना एवं ढींगरा फैमिली फाउंडेशन - कहानी पुरूस्कार (2017)

कथादेश कहानी पुरुसकार (2016)


प्रकाशित रचनायें :

उपन्यास:

रेत के घर (भावना प्रकाशन )

जलाक (आधार शिला प्रकाशन)

सूरज नहीं उगेगा, अरी ओ कनिका (संयुक्त रूप में) विश्वास प्रकाशन

न भेज्यो बिदेस (नमन प्रकाशन)

अब के बिछुड़े (नमन प्रकाशन)

पारो (सभ्य प्रकाशन)


कहानी संग्रह :

उत्तरायण (नमन प्रकाशन)

खाली हथेली (बोधि प्रकाशन)

आर न पार (नमन प्रकाशन)


कविता-संग्रह :

शिखण्डी युग (अर्चना प्रकाशन)

बराह (वाणी प्रकाशन)

यह युग रावण है (अयन प्रकाशन)

मुझे बुद्ध नही बनना (अयन प्रकाशन)

अंग-संग (बोधि प्रकाशन)


पंजाबी कविता-संग्रह :

में कौन हाँ (चेतना प्रकाशन)


संस्मरण :

सोखी हुई स्याही


पता :

सुदर्शन प्रियदर्शिनी

246 Stratford Dr.

Broadview Hts., Ohio 44147

U.S.A.

(440) 717-1699

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