Shalaakyavigyan Karna, Naasa, Grasni Rogon Ka Upchar

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अग्र अथवा अधिक अधिकतर अभिमध्य अर्बुद अवकाश अवरोध अस्थि इस इसका इसकी इसके इसमें इसे उपचार उपास्थि ऊतक ऊपर ऊपरी ऊर्ध्व एक एवं कम कर करती है करते करने कर्ण कर्णपटह कर्णमूल कर्णावर्त कहते हैं का कान कारण किया जाता है की की ओर के पश्चात् के बीच के लिए के साथ कोशिका क्रिया गलतुण्डिका गुहा ग्रसनी ग्रासनली चित्र जब जाँच जाती जाते हैं जाय जिससे जिह्वा जीवाणु जैसे जो तंत्रिका तथा तन्त्रिका तालु तीव्र त्वचा दर्द दी जाती दीवार दोनों द्वारा धमनी नली नहीं नाक नासा नासागुहा नासाग्रसनी निदान निम्न निम्नलिखित नीचे पर परीक्षा पश्च पाश्विक पेशी पैदा प्रकार प्रधान बन्द बहुत बाह्य भाग भाग में भी मध्य मध्यकर्ण में यदि यह या ये रक्त रोग रोगी को लसीका वायु विद्रधि विवर शोथ श्रवण संक्रमण सकता है समय से होता है स्वर स्वरयन्त्र ही है और हो जाता है हो तो होता है होती होते हैं होने से

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