Bharat Ke Pracheen Bhasha Pariwar Aur Hindi Bhag-1

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Rajkamal Prakashan, Sep 1, 2008 - Hindi language - 386 pages
भारतीय भाषाओं का आपस में बहुत गहरा रिश्ता है। आर्य, द्रविड़, कोल और नाग, भारत के इन चारों मुख्य भाषा-परिवारों में कई ऐसी भाषाएँ हैं जिन पर बहुत कम बातचीत हुई है, जबकि आधुनिक भारतीय भाषाओं के आपसी सम्बन्धों को जानने के लिए यह कार्य अत्यावश्यक है। दूसरे शब्दों में, आर्य, द्रविड़, कोल और नाग भाषा-परिवारों के अन्तर्गत कम परिचित जितनी भाषाएँ हैं उनका वैज्ञानिक अध्ययन आम प्रचलित भाषाओं के सम्बन्धों की सही पहचान कराने में सक्षम होगा। साथ ही भारतीय भाषा-परिवारों का विश्व के गैर-भारतीय भाषा-परिवारों से क्या सम्बन्ध है, इसकी भी गहरी पहचान सम्भव होगी। भारतीय भाषाओं के वैज्ञानिक अध्ययन के इसी महत्व को रेखांकित करते हुए सुविख्यात समालोचक डॉ. रामविलासजी ने यह कालजयी शोध-कृति प्रस्तुत की थी। तीन खण्डों में प्रकाशित इस ग्रन्थ का यह प्रथम खण्ड है, जिसमें उन्होंने हिन्दीभाषी क्षेत्र की बोलियों का ग्रहन अध्ययन किया, और हिन्दी तथा सम्बद्ध बोलियों के विकास को प्राचीन आर्य कबीलाई भाषाओं के साथ रखा-परखा है। भाषाविज्ञान पर एक अप्रतिम और युगान्तरकारी ग्रन्थ।
 

Contents

Section 1
7
Section 2
9
Section 3
27
Section 4
53
Section 5
61
Section 6
63
Section 7
71
Section 8
98
Section 16
237
Section 17
275
Section 18
291
Section 19
293
Section 20
301
Section 21
307
Section 22
309
Section 23
313

Section 9
125
Section 10
134
Section 11
139
Section 12
152
Section 13
173
Section 14
204
Section 15
217
Section 24
340
Section 25
346
Section 26
355
Section 27
367
Section 28
377
Section 29
380
Section 30

Common terms and phrases

अंग्रेजी अधिक अनेक अन्य अपभ्रंश अवधी आदि आधुनिक आर्य आर्य भाषाओं इन इस इसका इसी प्रकार उसका एक ऐसे कर कश्मीरी का व्यवहार कारक कारण काल किया किसी की कुछ कृदन्त के लिए के समान के साथ को कोई क्रिया के क्षेत्र गया है चिन्ह जाता है जैसे डा० तरह तुलसीदास तो था थी थे दो दोनों ध्वनि ध्वनियों नहीं है ने पंजाबी पर पहले पुरुष प्रतिरूप प्रत्यय प्रभाव प्रयुक्त प्रयोग प्रवृत्ति प्राकृत प्राचीन बँगला बना बहुत बात बाद ब्रजभाषा भारत भाषा में भाषाओं के भाषाओं में भाषाविज्ञान भिन्न भी भेद भोजपुरी मगही मराठी मूल में भी मैथिली यह यहाँ या ये रचना रूप रूप में रूप है रूपान्तर रूपों में लैटिन वर्ण वह वाले वे वैसे ही व्यवहार होता शब्द शब्दों संस्कृत संस्कृत में सम्बन्ध सर्वनाम सिन्धी से स्थान हिन्दी हिन्दी में ही हुआ है हुए है और है किन्तु हैं हो होगा होता है होती होते होने

About the author (2008)

डॉ रामविलास शर्मा 10 अक्तूबर सन् 1912 को ग्राम ऊँचगाँव सानी, जिला-उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में जन्मे रामविलास शर्मा ने 1932 में बी.ए., 1934 में एम.ए. (अंग्रेजी), 1938 में पी. एच. डी. (लखनऊ विश्वविद्यालय) की उपाधि प्राप्त की ! लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में पाँच वर्ष तक अध्यापन-कार्य किया ! सन 1943 से 1971 तक आगरा के बलवंत राजपूत कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष रहे ! बाद में आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुरोध पर के.एम. हिन्दी विद्यापीठ के निदेशक का कार्यभार स्वीकार किया और 1974 में अवकाश लिया। सन 1949 से 1953 तक रामविलासजी अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री रहे ! देशभक्ति तथा मार्क्सवादी चेतना रामविलास जी की आलोचना की केन्द्र-बिन्दु है। उनकी लेखनी से वाल्मीकि तथा कालिदास से लेकर मुक्तिबोध तक की रचनाओं का मूल्यांकन प्रगतिवादी चेतना के आधार हुआ। उन्हें न केवल प्रगति-विरोधी हिन्दी-आलोचना की कला एवं साहित्य-विषयक भ्रान्तियों के निवारण का श्रेय है, वरन् स्वयं प्रगतिवादी आलोचना द्वारा उत्पन्न अन्तर्विरोधों के उन्मूलन का गौरव भी प्राप्त है। साहित्य अकादेमी का पुरस्कार तथा हिन्दी अकादेमी, दिल्ली का शताब्दी सम्मान से सम्मानित। देहावसान: 30 मई, 2000।

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