Lahron Ke Rajhans

Front Cover
Rajkamal Prakashan, Jan 1, 2004 - Hindi drama - 131 pages
A play.
 

Contents

Section 1
iv
Section 2
xvi
Section 3
42
Section 4
44
Section 5
48
Section 6
51
Section 7
83
Section 8
107

Other editions - View all

Common terms and phrases

अंक अधिक अपनी अपने अब अभी अलका आज आप इतना इस उस उसका उसकी ओर उसके उसे एक ऐसा ओर से और कर करता करने कह कहा का कारण कालिदास किया किसी की ओर कुछ के पास के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्यों गया है गौतम बुद्ध चला चाहता छाया जा जाकर जाता है जाती जाने जैसे जो तक तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था कि थी थे दर्पण दिन दिया दिल्ली देख देता है दो नन्द नन्द के नहीं है नाटक नाटक के ने पर परन्तु पहले प्रयत्न फिर बहुत बात बाद बार बाहर बीच भिक्षु भी मन में मुझे मेरे मैं मैंने मैत्रेय यह यहाँ या रहा है रही रहे रात रूप में लेकर वह वहाँ वे व्यक्ति श्यामांग श्वेतांग सकता सब समय सामने सुन्दरी सुन्दरी के से सोच स्वर हाँ हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है कि हैं हो होगा होता

About the author (2004)

जन्म: 8 जनवरी, 1925; जंडीवाली गली, अमृतसर। शिक्षा: संस्कृत में शास्त्री, अंग्रेजी में बी.ए., संस्कृत और हिन्दी में एम.ए.। आजीविकाः लाहौर, मुंबई, शिमला, जालंधर और दिल्ली में अध्यापन, संपादन और स्वतंत्र-लेखन। महत्त्वपूर्ण कथाकार होने के साथ-साथ एक अप्रतिम और लोकप्रिय नाट्य-लेखक। नितांत असंभव और बेहद ईमानदार आदमी। प्रकाशित पुस्तकें: अँधेरे बंद कमरे, अंतराल, न आने वाला कल (उपन्यास); आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे-अधूरे, पैर तले की ज़मीन (नाटक); शाकुंतल, मृच्छकटिक (अनूदित नाटक); अंडे के छिलके, अन्य एकांकी तथा बीज नाटक, रात बीतने तक तथा अन्य ध्वनि नाटक (एकांकी); क्वार्टर, पहचान, वारिस, एक घटना (कहानी-संग्रह); बक़लम खुद, परिवेश (निबन्ध); आखिरी चट्टान तक (यात्रावृत्त); एकत्र (अप्रकाशित-असंकलित रचनाएँ); बिना हाड़-मांस के आदमी (बालोपयोगी कहानी-संग्रह) तथा मोहन राकेश रचनावली (13 खंड)। सम्मान: सर्वश्रेष्ठ नाटक और सर्वश्रेष्ठ नाटककार के संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, नेहरू फ़ेलोशिप, फि़ल्म वित्त निगम का निदेशकत्व, फि़ल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य। निधन: 3 दिसम्बर, 1972, नई दिल्ली।

Bibliographic information