Lahron Ke RajhansA play. |
Contents
Section 1 | iv |
Section 2 | xvi |
Section 3 | 42 |
Section 4 | 44 |
Section 5 | 48 |
Section 6 | 51 |
Section 7 | 83 |
Section 8 | 107 |
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Common terms and phrases
अंक अधिक अपनी अपने अब अभी अलका आज आप इतना इस उस उसका उसकी ओर उसके उसे एक ऐसा ओर से और कर करता करने कह कहा का कारण कालिदास किया किसी की ओर कुछ के पास के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्यों गया है गौतम बुद्ध चला चाहता छाया जा जाकर जाता है जाती जाने जैसे जो तक तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था कि थी थे दर्पण दिन दिया दिल्ली देख देता है दो नन्द नन्द के नहीं है नाटक नाटक के ने पर परन्तु पहले प्रयत्न फिर बहुत बात बाद बार बाहर बीच भिक्षु भी मन में मुझे मेरे मैं मैंने मैत्रेय यह यहाँ या रहा है रही रहे रात रूप में लेकर वह वहाँ वे व्यक्ति श्यामांग श्वेतांग सकता सब समय सामने सुन्दरी सुन्दरी के से सोच स्वर हाँ हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है कि हैं हो होगा होता