Aadhunik Hindi Sahitya Ka Itihas

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Lokbharti Prakashan, Sep 1, 2007 - 395 pages
आधुनिक युग इतनी तेजी से बदल रहा है और बदल रहा है कि साहित्य के बदलाव से भी उसे समझा जा सकता है । इस बदलाव को क्षिप्रतर बदलाव को साहित्य और इतिहास दोनों के संदर्भों में एक साथ पकड़ना ही इतिहास है । यह पकड़ तब तक विश्वसनीय नहीं हो सकती जब तक समसामयिक अखबारी साहित्य को श्रेष्ठ भविष्योन्मुखी साहित्य से अलगाया न जाय । प्रत्येक युग का आधुनिक काल ऐसे साहित्य से भरा रहता है जो साहित्येतिहास के दायरे में नहीं आता । किन्तु यह जरूरी नहीं है कि हम अपने इतिहास के लिए ग्रंथों का जो अनुक्रम प्रस्तुत करेंगे वह कल भी ठीक होगा, अपरिवर्तनीय होगा । इस नये संस्करण में कुछ पुरानी बातों को बदल दिया गया है और नये तथ्यों के आधार पर उनका नया अर्थापन किया गया है । इस संस्करण को अद्यतन बनाने के लिए बहुत सारे लेखकों, कवियों और रचनाकारों को भी सम्मिलित कर लिया गया है अब यह अद्यतन रूप में आपके सामने है ।
 

Contents

Section 1
8
Section 2
15
Section 3
16
Section 4
21
Section 5
29
Section 6
30
Section 7
31
Section 8
37
Section 12
78
Section 13
103
Section 14
123
Section 15
137
Section 16
194
Section 17
219
Section 18
227
Section 19
229

Section 9
40
Section 10
42
Section 11
63
Section 20
247
Section 21
305
Copyright

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Common terms and phrases

अधिक अपनी अपने अर्थ आदि आधुनिक इतिहास इन इस इसके इसमें इसलिए इसी इसे उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उपन्यास उपन्यासों उस उसका उसकी उसके उसे एक कर करता है करना करने कवि कविता कवियों कहा कहानी कहीं का काल काव्य किन्तु किया गया है किया है किसी की की ओर की तरह कुछ के कारण के प्रति के लिए के साथ को कोई क्या गए गया है जा सकता है जाता है जाती जी जीवन जो तक तथा तो था थी थे दिखाई दिया दूसरे दृष्टि देश दो दोनों द्वारा नई नए नहीं है नाटक नाम ने पर पहले प्रकार प्रकाशित प्रभाव प्रयोग प्रसाद प्रेम फिर बन बहुत बाद भाषा में भी यह या युग ये रहा रहे रूप में लिखा वह वे व्यक्ति व्यक्तित्व शुक्ल सन् समय समाज साहित्य से हिन्दी ही हुआ हुई हुए है और है कि है तो हैं हो होकर होता है होती होने

About the author (2007)

हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास’ के रूप में हिंदी को एक अनूठा आलोचना-ग्रंथ देनेवाले बच्चन सिंह का जन्म जिला जौनपुर के मदवार गांव में हुआ था। शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में हुई। आलोचना के क्षेत्र में आपका योगदान इन पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है : क्रांतिकारी कवि निराला, नया साहित्य, आलोचना की चुनौती, हिंदी नाटक, रीतिकालीन कवियों की प्रेम व्यंजना, बिहारी का नया मूल्यांकन, आलोचक और आलोचना, आधुनिक हिंदी आलोचना के बीज शब्द, साहित्य का समाजशास्त्र और रूपवाद, आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास, भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन तथा हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास (समीक्षा)। कथाकार के रूप में आपने लहरें और कगार, सूतो व सूतपुत्रो वा (उपन्यास) तथा कई चेहरों के बाद (कहानी-संग्रह) की रचना की। प्रचारिणी पत्रिका के लगभग एक दशक तक संपादक रहे। निधन : 5 अप्रैल, 2008

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