गीत कलश - आनन्द शर्मा समग्र: Geet Kalash - Anand Sharma Samagra (Hindi Sahitya)

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Bhartiya Sahitya Inc., Nov 11, 2021 - Foreign Language Study - 288 pages

अन्तर्कथा संयोग की...


श्रद्धेय पं. कृष्णानन्द चौबे जी के घनिष्ठ मित्र व कविकुल के संस्थापक सदस्य आनन्द शर्मा जी जब तक कानपुर में रहे मैं गुरू जी और उनसे भरपूर सानिध्य सुख, स्नेह, आशीष और प्रशंसा पाता रहा। सन 1981 में जब शर्मा जी का ट्रान्सफर आगरा हो गया तो यह सुख कम जरूर हुआ मगर खत्म नहीं हुआ। आगरा में रहते हुए भी शर्मा जी कानपुर मित्रों से मिलने यदा-कदा आते रहते थे और अपने अंतरंग सहकर्मी व घनिष्ठ मित्र पं. रामकुमार द्विवेदी जी के यहाँ ही रुकते थे क्योंकि वह द्विवेदी जी के पारिवारिक सदस्य जैसे थे।

शर्मा जी के आते ही कविकुल में सूचना घूम जाती फिर हम लोग बैठक करते और जी भर कविता सुनते-सुनाते। द्विवेदी जी शर्मा जी के छोटे भाई की तरह थे। हम लोग शर्मा जी के गीत सुनकर जब भी गीत संग्रह की पाण्डुलिपि तैयार करने को कहते तो मुस्कुरा कर, कर दूँगा... का आश्वासन ही मिलता था।

हर बार लौटते समय मैं द्विवेदी जी से आग्रह करके यह ज़िम्मेदारी उन्हें सौंप आता। एक बार द्विवेदी जी के घर जाने पर उन्होंने विजेता की भांति प्रसन्न मुद्रा में एक फाइल देते हुए कहा कि राजेन्द्र जी, ये लीजिए भाई साहब से इतने गीत टाइप करवा लिए हैं। मैं गदगद हो गया कि चलो पाण्डुलिपि की शुरुआत तो हुई, घर आकर फाइल सुरक्षित रख दी और भूल गया।

कुछ बरस बाद 2007 में द्विवेदी जी द्वारा ही अचानक संघातिक समाचार मिला कि शर्मा जी का हृदयाघात से निधन हो गया। कविकुल के सब लोग हतप्रभ होकर दुखी हो गए, मन रो दिया, मुझे दैवीय विधान की विवशता के साथ दुःख इस बात का था कि गीत संग्रह का सपना अधूरा रह गया। कुछ वर्षों बाद 2010 में गुरू जी (पं. कृष्णानन्द चौबे जी) भी गोलोकवासी हो गये। समय के साथ सन् 2012 में कविकुल का नामकरण करने वाले रामकुमार द्विवेदी जी भी दिवंगत हो गये। कर्णधार चौबे जी के देहान्त के बाद कविकुल अनाथ हो गया और कुल छिन्न- भिन्न हो गया।

संयोग से गत वर्ष किसी कार्यवश अपनी लाइब्रेरी खंगालते हुए हेलो कानपुर की फाइल के बीच सुरक्षित रामकुमार द्विवेदी जी द्वारा दी गई शर्मा जी के गीतों की फाइल मिल गई तो प्रसन्नता के साथ शर्मा जी और कविकुल की स्मृतियाँ ताज़ा हो गईं। गीतों को पढ़कर अभिभूत मन बेचैन हो उठा। लगभग तीस-पैंतीस वर्ष पुराने काग़ज़ों पर टाइपिंग भी ब्लर हो चुकी थी परन्तु मन में विचार आया कि क्यों न गीतों को सुरक्षित कर लिया जाये वर्ना इन विलक्षण गीतों की हत्या हो जाएगी और कानपुर का साहित्य जगत इनसे अपरिचित रह जाएगा तथा हत्या का दोष मुझ पर होगा। बस इसी भावना का उद्भव इस संकलन का बीज तत्व है जो ईश्वर द्वारा निर्धारित गीतों की नियति व समयानुसार उसी की प्रेरणा से अंकुरित हो गया। मैंने जब गीत सुरक्षित कर लिय़े तो मेरे पास मात्र 48 गीत निकले। एकाएक ध्यान आया कि शर्मा जी के बेटे के पास तो उनके सृजन की सम्पदा सुरक्षित होनी चाहिए, लेकिन मैं तो उससे अपरिचित था, सम्पर्क की सम्भावना की तलाश में सन्त (द्विवेदी जी के सुपुत्र) की याद आई। मैंने सन्त से बात की तो उसने पीयूष का मोबाइल नम्बर उपलब्ध करा दिया। ख़ैर.... लगभग साल-डेढ़ साल के सतत प्रयास के बाद मैं पीयूष को राज़ी करने में सफल हो गया और उसने शर्मा जी का रजिस्टर भेज दिया।

यह भी ईश्वरीय संयोग है कि तीन दहाइयों से अधिक पुराने मित्र गोपाल शुक्ल, जो भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशन चलाने के साथ ही www.pustak.org नाम से वेबसाइट का संचालन कर रहे हैं, से विगत दो वर्षों से अंतरंगता हो गई तो संग्रह का प्रकाशन सम्भव हो सका।

संग्रह में जो कुछ भी अच्छा है उसका श्रेय शर्मा जी के गीतों को जाता है मेरे लिए तो यह मेरे स्वप्न की पूर्णता और सदस्य होने के नाते कविकुल के अप्रतिम गीत कवि श्रद्धेय अग्रज शर्मा जी के प्रति कविकुल की विनत श्रद्धांजलि है।

मेरे यथा सम्भव प्रयास और सजगता के बावजूद भी सम्भव है कहीं कोई ग़लती मुस्कुराती मिल जाए तो क्षमा कीजिएगा, आनन्द मिले तो आशीष दीजिएगा।

- राजेन्द्र तिवारी

14 नवम्बर 2021, देवोत्थानी एकादशी

कानपुर नगर

मो. - 8381828988

 

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About the author (2021)

आनन्द शर्मा         

पिताश्री   -   पं. हर स्वरूप शर्मा

जन्म     -   12 अगस्त, सन् 1937

जन्मस्थान -   सिकन्द्राबाद, जिला- बुलन्दशहर

निधन    -   9 मई सन् 2007

विशेष    -   छायावादोत्तर वरिष्ठ गीतकार, कानपुर प्रवास के दौरान ‘कविकुल’ के संस्थापक सदस्य आनन्द शर्मा एक ऐसे अन्तर्मुखी रचनाकार हैं जिनके गीतों में उनका समकालीन दौर पूरी सघनता से मुखर हुआ है। अनुभूतियों को सटीक भाषा में व्यक्त करने की उनकी क्षमता अदभुत है उन्होंने बहुत अधिक नहीं लिखा है। कारण उनकी सोच इतनी स्पष्ट है कि एक विचार या अनुभूति को व्यक्त करने के लिये उन्होंने दस-बीस गीत नहीं लिखे। उन्होंने उसे पूर्णता के साथ एक ही गीत में व्यक्त किया है। उनकी रचनात्मक क्षमता और प्रगाढ़ संवेदनशीलता के कारण ही यह सम्भव है कि विचारों में सघनता के पश्चात् भी उनमें उलझाव नहीं है। उनके गीतों का कथ्य समकालीन होकर भी सर्वकालीन लगता है। कर्मचारी राज्य बीमा निगम, आगरा से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन करते हुए ९ मई २००७ को ह्रदय गति रुकने से उनका देहावसान हो गया। देह रूप में वे अब हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन अपनी रचनाओं के रूप में सदा हमारे साथ रहेंगे।


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