Jungle Ki Jadi ButiyanRajkamal Prakashan वैज्ञानिक उपलब्धियों ने जीवन को जहां सहज व सुलभ बनाया है, वहीं प्रकृति से की गई छेड़-छाड़ के कारण पर्यावरण दूषित हुआ है। असाध्य रोगों के पीछे मुख्य कारक प्रदूषण भी रहा है। स्वस्थ रहने के लिए प्रकृति हमें असंख्य फल, फूल, सब्जश्ी, अनाज, जड़ी-बूटी उपलब्ध कराती है। प्रस्तुत पुस्तक प्रकृति से न सिर्फ़ हमारा तादात्म्य बनाती है वरन् उन जड़ी-बूटियों से भी परिचय कराती है, जिनके दैनिक इस्तेमाल से हम कई बीमारियों से स्वयं को बचा सकते हैं। एरण्ड, पुनर्नवा, कतीरा हिन्दी, फनियर बूटी, कपूर तुलसी, बन काकड़ू, गोखरू, भांग, जवा पिप्पली, लता करंज, दण्डी दरिया, विधारा, निर्गुण्डी कन्द, सत्यानाशी, न्याजश्बो, सफ़ेद सत्यानाशी, पिण्डालु, सर्पगन्धा तथा पिप्पली आदि लगभग 19 वनस्पतियों का चित्रों व रेखाचित्रों सहित वर्णन पुस्तक को सुग्राह्य बनाता है। इन मानव उपयोगी वनस्पतियों के विविध भाषाओं में नाम, उनकी पहचान, उनका प्राप्ति-स्थान, उनकी कृषि, रासायनिक संघटन, घरेलू दवा-दारू में उपयोग तथा औद्योगिक उपयोग आदि दिए हैं। जड़ी-बूटियों में रुचि रखनेवालों, आयुर्वेद व यूनानी के अध्येताओं, अनुसन्धानकर्त्ताओं, वन-अधिकारियों व वन- कर्मियों, फ़ार्मेसियों, कच्ची जड़ी-बूटियों के व्यापारियों के लिए पुस्तक बेशक उपयोगी और संग्रहणीय है। |
Contents
Section 1 | 16 |
Section 2 | 29 |
Section 3 | 36 |
Section 4 | 51 |
Section 5 | 69 |
Section 6 | 75 |
Section 7 | 79 |
Section 8 | 96 |
Section 9 | 120 |
Section 10 | 121 |
Section 11 | 132 |
Section 12 | 140 |
Section 13 | 150 |
Section 14 | 162 |
Common terms and phrases
अंग्रेज़ी अधिक असम आयुर्वेद इस इसका इसकी इसके इसमें इसे उत्तर प्रदेश उपयोग ऊपर एक एरण्ड कन्द कन्नड़ कम कर करते कहते हैं का काण्ड काम किया जाता है की कुछ कुल के बाद के रूप में के साथ को गए गया चाहिए चित्र जड़ जा जाता है जाती जाते हैं जाने जावा जावा पिप्पली जो तक तथा तेल तेल की तो था थे दिया दूध देते हैं दो नहीं नाम निर्गुण्डी ने पंजाब पत्ते पत्तों पर परन्तु पानी पिपलामूल पुनर्नवा पैदा पौधा पौधे पौधों प्रकार प्रतिशत प्रयोग प्राप्त फल फूल बड़ा गोखरू बन बहुत बिहार बीज बीजों भांग भारत भी भूटान मात्रा मीटर मूल में में और में यह यह या ये रंग राजनिघण्टु रोगों लता करञ्ज लम्बे लाल वाला वाली वाले विधारा सं संस्कृत सत्यानाशी सन् सफ़ेद सरसों सर्पगन्धा से सेण्टीमीटर हि हिमालय ही हुआ हुई हुए है और है कि हो होता है होती होते हैं होने