Jaina tattvajñāna-mīmāṃsā

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Vīra Sevā Mandira Ṭrasṭa, 1983 - Jainism - 385 pages

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अतः अथवा अनुमान अनेक अन्य अपनी अपने अर्थ अहिंसा आचार्य आदि इन इस इसके इसमें इसी उक्त उनका उनकी उन्हें उन्होंने उपलब्ध उल्लेख उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक एवं और उनके और न कर करके करता है करते हैं करना कहा है का कारण किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के केवल को कोई क्योंकि गये चाहिए जब जा जाता है जाते जाय जैन जैसे जो ज्ञान तक तथा तरह तर्कशास्त्र तीन तो था थी थे दर्शन दिया दो दोनों द्वारा धर्म नहीं है नाम पं० पर पृ० पृष्ठ प्रकट प्रकार प्रमाण प्राप्त बतलाया भी में यदि यह यहाँ या ये रहे लिए लिखा लिये वर्ष वह वहाँ वही विचार विद्वान् वीरसेन वे सं० संस्कृत सकता है सभी समय साथ सिद्ध से स्पष्ट स्वीकार हम ही हुआ हुए है और है कि हैं होता है होती होते

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