Kāmāyanī

Front Cover
Bhāratī Bhandāra, 1964 - 302 pages

From inside the book

Contents

Section 1
18
Section 2
20
Section 3
26

27 other sections not shown

Other editions - View all

Common terms and phrases

अधीर अपना अपनी अपने अब अरे आज आह इड़ा इस उठा उधर उस उसी ऋग्वेद एक और कभी कर करता करती करते करने कर्म कह कहाँ कहीं का कि कितना कितनी किन्तु की कुछ के केवल को कोई कोमल कौन क्या क्यों क्षण गया चल चला चले चिर चेतना छाया जब जल जाती जिसमें जीवन का जैसे जो ज्यों ज्वाला तक तब तुम तू तो था थी थे दुख दूर दे देख देखा देव दो धीरे नव नहीं निज नील ने पथ पर पवन प्रकृति प्राणी फिर बन बना बने बस भर भरा भरी भाव भी भूल मधु मधुर मन मनु माया मुख में मेरा मेरी मेरे मैं यह यहाँ यही या ये रह रहा रही रहे लगा लिये ले वह वही विकल विश्व वे शीतल श्रद्धा संसृति सब सा सी सुख सुन्दर सृष्टि से स्वयं हम हाँ ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय है हैं हो होता होती

Bibliographic information