Rahasyavādī Jaina Apabhraṃśa kāvya kā Hindī para prabhāva

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Vāṇī Prakāśana, 1991 - Hindi poetry - 135 pages
On Jaina mystic poetry in Apabhraṃśa language and its influence on Hindi poetry.

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अतः अथवा अनेक अपने अपभ्रंश अर्थात् आत्मा आत्मा के आदि इन इस प्रकार इसी उक्त उस उसके ऋषभदेव एक कबीर कर करता है करते करना करने कर्म कर्मों कवि कहते हैं कहा का कारण काव्य किया है किसी की कुछ के लिए के विषय में केशी को कोई गई गया है गुरु चाहिए जब जा सकता जाती जीव जैन अपभ्रंश जैन धर्म जो ज्ञान डॉ० तक तथा तो था थी थे दर्शन दो दोनों दोहा द्वारा नहीं नहीं है नाम ने पद पर परन्तु परमात्मप्रकाश परमात्मा पूर्ण पृ० प्रभाव प्राप्त प्रेम बनारसीदास बात ब्रह्म भी भेद मन माना मुनि रामसिंह में भी मैं मोक्ष यह यहां या रचना रहस्यवाद राम रूप में लिखा वह वही वाले वे वेद शब्द शरीर शिव सं० संसार सकता है सब सभी समान सम्प्रदाय साहित्य से सो स्वरूप हम हिन्दी हिन्दी साहित्य ही हुआ हुए है और है कि होता है होती होने

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