Pṛthvīrāja rāsō. Sampādaka: Kavirāva Mōhanasiṃha. [Prathama samskaraṇa], Volume 1 |
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वानीयं=सरस्वती ! पयं=पद । स्त्रीष्टं-धारण=सृजन शक्ति को
धारण करने वाले ( ब्रह्मा ) । धारयं-वसुमति, वसुमति-धारय=पृथ्वी
. को धारण करने वाले शेष नाग ' पिंगल ) । चरणाश्रयं=वरणाश्रय !
वानीयं=सरस्वती ! पयं=पद । स्त्रीष्टं-धारण=सृजन शक्ति को
धारण करने वाले ( ब्रह्मा ) । धारयं-वसुमति, वसुमति-धारय=पृथ्वी
. को धारण करने वाले शेष नाग ' पिंगल ) । चरणाश्रयं=वरणाश्रय !
Page 44
श्रप जीवह=प्राणों को श्रर्पित करने को उद्यत, प्राणों परं
खेलकर । दाह=ईष्र्या, डाह । धारणधारण करने वाले, पैदा करने वाले
। धुर धवल=धुरा के धोरियों ने । उड़ि=उड़कर । सर करन=जीतने को ।
श्रप जीवह=प्राणों को श्रर्पित करने को उद्यत, प्राणों परं
खेलकर । दाह=ईष्र्या, डाह । धारणधारण करने वाले, पैदा करने वाले
। धुर धवल=धुरा के धोरियों ने । उड़ि=उड़कर । सर करन=जीतने को ।
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अर्थ:- उन बालाओं के भ्रांति दायक ( भक्ति और विलास की
भ्रांति देने वाले ) चरित्रों के तथ्य के ... अर्थः-देवाधि-देव
वसुदेव-सुत, सदैव गुण राशि की पूर्ति करने वाले हैं पल मात्र भी
उनके ...
अर्थ:- उन बालाओं के भ्रांति दायक ( भक्ति और विलास की
भ्रांति देने वाले ) चरित्रों के तथ्य के ... अर्थः-देवाधि-देव
वसुदेव-सुत, सदैव गुण राशि की पूर्ति करने वाले हैं पल मात्र भी
उनके ...
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Common terms and phrases
१ पा० अपने आदि इस प्रकार उन उस उस समय उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक ओर और कन्ह कर करके करता करना करने करने वाले करि कवि कवित्त कहा का का० कि किया की कृष्ण के लिये के समान के साथ को कोई गई गया गये ग्रा० घ० चंद जा जिससे जो तक तथा तब तुल्य तो था थी थे दिन दिया दिल्ली दी दे० देने दोनों दोहा द्वारा धर नहीं नाम ने पर पाठ १ पुत्र पृथ्वी पृथ्वीराज पृथ्वीराज के प्रा० पा० १ प्रा० पाठ प्राप्त बर बल बात भी मन मानों मुख मुगल में यह या युक्त युद्ध रस रही राज राजस्थान राजा राम रूप लगा लगी लगे लिया वर वर्णन वह वाला विशेष वीर वीरों वे वेद शरीर शिव श्रेष्ठ सब सिर सु सूर्य से सेना स्थान स्वरूप हाथ हाथी ही हुआ हुई हुए हुश्रा है हैं हो होकर होने