Pṛthvīrāja rāsō. Sampādaka: Kavirāva Mōhanasiṃha. [Prathama samskaraṇa], Volume 1 |
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प्रा० पाठ १ दे० । २ का०, दे० । ३ का०, दे० । ४ का०, ५ भों० । ६ का०,दे० । ७
पा०, का० । शब्दार्थः-जा-जिसके । राग रुचियं=अनुराग श्रीर
इच्छा करते हुए । भूव=भ्रकुटी, भ्रूस्थल । गुनंजयाय गुनजा=
जिसके ...
प्रा० पाठ १ दे० । २ का०, दे० । ३ का०, दे० । ४ का०, ५ भों० । ६ का०,दे० । ७
पा०, का० । शब्दार्थः-जा-जिसके । राग रुचियं=अनुराग श्रीर
इच्छा करते हुए । भूव=भ्रकुटी, भ्रूस्थल । गुनंजयाय गुनजा=
जिसके ...
Page 77
प्रा० पाठ १ से ५, दे० । शब्दार्थ:—रह-यह। अर्था:-यह कह कृष्ण बलराम
से और अन्य सब से नंद अंक से अंक लगाकर मिले और जाते समय
गोपादि के पैर व्रज मार्ग पर नहीं पड़ने लगे और वे सब हा ! नाथ !
हा !
प्रा० पाठ १ से ५, दे० । शब्दार्थ:—रह-यह। अर्था:-यह कह कृष्ण बलराम
से और अन्य सब से नंद अंक से अंक लगाकर मिले और जाते समय
गोपादि के पैर व्रज मार्ग पर नहीं पड़ने लगे और वे सब हा ! नाथ !
हा !
Page 219
प्रा० पाठ, १ दे० पा० भों० । २, ३ दे० । शब्दार्थों:-फुट्टि=फैल गई ।
सह=सब श्रोर, चारों श्रोर । श्रानि=श्राकर । सम=समद, सामने | Q,
exe wev अथ-परिहास रूप में चारों ओर यह बात फैली कि पृथ्वीराज ...
प्रा० पाठ, १ दे० पा० भों० । २, ३ दे० । शब्दार्थों:-फुट्टि=फैल गई ।
सह=सब श्रोर, चारों श्रोर । श्रानि=श्राकर । सम=समद, सामने | Q,
exe wev अथ-परिहास रूप में चारों ओर यह बात फैली कि पृथ्वीराज ...
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Common terms and phrases
१ पा० अपने आदि इस प्रकार उन उस उस समय उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक ओर और कन्ह कर करके करता करना करने करने वाले करि कवि कवित्त कहा का का० कि किया की कृष्ण के लिये के समान के साथ को कोई गई गया गये ग्रा० घ० चंद जा जिससे जो तक तथा तब तुल्य तो था थी थे दिन दिया दिल्ली दी दे० देने दोनों दोहा द्वारा धर नहीं नाम ने पर पाठ १ पुत्र पृथ्वी पृथ्वीराज पृथ्वीराज के प्रा० पा० १ प्रा० पाठ प्राप्त बर बल बात भी मन मानों मुख मुगल में यह या युक्त युद्ध रस रही राज राजस्थान राजा राम रूप लगा लगी लगे लिया वर वर्णन वह वाला विशेष वीर वीरों वे वेद शरीर शिव श्रेष्ठ सब सिर सु सूर्य से सेना स्थान स्वरूप हाथ हाथी ही हुआ हुई हुए हुश्रा है हैं हो होकर होने