Pṛthvīrāja rāsō. Sampādaka: Kavirāva Mōhanasiṃha. [Prathama samskaraṇa], Volume 1Sāhitya Saṃstthāna, 1954 |
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... रस के प्रत्येक अंग का प्रकट रूप से वर्णन करके सुनाने को कहा . किन्तु कवि प्रसन्न नहीं हुआ । दोहा अंग अंग हरि रूप रस , विविध विवेक ...
... रस के प्रत्येक अंग का प्रकट रूप से वर्णन करके सुनाने को कहा . किन्तु कवि प्रसन्न नहीं हुआ । दोहा अंग अंग हरि रूप रस , विविध विवेक ...
Page 237
... रस सारध = प्रत्येक के रस - तत्व को चखने वाली , मधु संचय करने वाली , मधु - मवखी । कोटव्वा = कोट , दुर्ग । लंगर = लंगा , लंगड़ा , हनुमान ...
... रस सारध = प्रत्येक के रस - तत्व को चखने वाली , मधु संचय करने वाली , मधु - मवखी । कोटव्वा = कोट , दुर्ग । लंगर = लंगा , लंगड़ा , हनुमान ...
Page 317
... रस की साक्षात मूर्ति बनकर ( शत्रुओं ) तमो गुण को होम रहा हो । परनि वीर प्रथिराज वर , बहुत कहै रस जोइ । कविवर बरतन ना बने , वर शब्दार्थः ...
... रस की साक्षात मूर्ति बनकर ( शत्रुओं ) तमो गुण को होम रहा हो । परनि वीर प्रथिराज वर , बहुत कहै रस जोइ । कविवर बरतन ना बने , वर शब्दार्थः ...
Common terms and phrases
अंग अपने अर्थ अर्थः आदि इस प्रकार उन उस उस समय उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक ओर और कन्ह कर करके करता करते करना करने करि कवि कवित्त कहा का का० कि किया की कृष्ण के लिये के समान के साथ को कोई गई गया गये ग्रा० पाठ १ घ० घर चंद जा जिससे जो तथा तब तुल्य तो था थी थे दिन दिया दिल्ली दी दे० देने दोनों दोहा द्वारा नहीं नाम ने पर पा० पा० १ पुत्र पृथ्वी पृथ्वीराज पृथ्वीराज के प्रा० प्राप्त बर बल बात ब्रह्मा भी मन मानों मुख मुगल में यह या युक्त युद्ध रस राज राजस्थान राजा राम रूप लगा लगी लगे लिया वर वर्णन वह वाला वाले विशेष वीर वीरों वे शब्दार्थः शरीर शिव श्रेष्ठ सब सिर सु सूर्य से सेना स्थान स्वरूप हाथ हाथी ही हुआ हुई हुए हे है हैं हो होकर होने